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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दा + द .. १० X दा ..ET = क त+द १० द (१० .. दा = ट _ १०x त verdag + भिसम्बन्धि प्रकीर्णक्र इस में जो संख्या आवर्त दशमलव के आदि में रहती है और फिर नहीं आती उस का योतक है जो संख्या वही फिर २ आती है उस का तक क है । और संख्या के एकस्थान का अङ्क पहिले से जिस दशमलव स्थान में होगा उस संख्या का द्योतक त है और क संख्या में जितने स्थान होंगे उन की संख्या का द्योतक द है । अब इस आवर्त दशमलव के समान जो दा यह भित्र संख्या मानो तो १० P क त+द त क त द qỗ (q☎ — 1) त १) अ + क www.kobatirth.org + द (१ - १) अ + क + + १० क त+द १० १० क त+३द क त+द समों में सम घटा देने से, (१३ - १) दा = + + क त+२द क त+द १० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir + (१० - १) ४० + ५ १० x १० - १) + उदा० (१) • ५५५५ इत्या० इस का भिवरूप क्या है ? यहां अ = ० = ५, त = ०, और द = १ आवर्त दशमलव का भित्र रूप जानने के त द १०(१० १) लिये यह एक पक्ष है इस में अ, क, त, और द इन का उत्थापन करने से भित्र रूप तुरन्त स्पष्ट होगा । For Private and Personal Use Only क त+३द क त+३द १० (१३ – १) अ + क ५ ୧ १८० 1 उदा० (२) •०२०२०२० इत्या० इस का भित्ररूप क्या ఎ यहां = ०, क = २२, त = १ और द = २ + इत्यादि + इत्यादि
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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