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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૧૦: भित्रसम्बन्धि प्रकीर्णक । तो इस से स्पष्ट है यदि म यह कोइ धनात्मक संख्या विषम म म हो तो + यह य + र से निःशेष होगा । अर्थात् म य +र य +र म म - १ म =य www.kobatirth.org म य - र म- १ य + म-२ -- इत्यादि - य म-२ य र+य म म और जो म कोइ धनात्मक संख्या सम हो तो य + ₹ इस में य + र का भाग देने से २र यह शेष बचेगा इस लिये जो म कोइ धनात्मक संख्या सम हो तो य + ई से निःशेष होगा । अर्थात् म-२ म-३ - य - य र+य T Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म म २ वा इत्या० + पर म- १ +र म-२ म -र यह य +र For Private and Personal Use Only म - १ | - र ७४ | यह स्पष्ट है कि जब कोई राशि घटते २ शून्य हो जाव तब फिर वह और नहीं घट सकता इस लिये ऐसे घटने को उस राशि का परम ह्रास कहते हैं । और जब कोइ राशि बढ़ते २ ऐसा बढ़ नावे कि जिस को कोइ इयत्ता अर्थात् परिमाण न कर सके तब उस की परम वृद्धि होगी । इस लिये ऐसे बढ़े हुए राशि को अनन्न राशि कहते हैं । जब किसी राशि का परम ह्रास हो जाता है तब उस को ० दूस चिह्न से योतित करते हैं और जब कोई राशि अनन्त हो जाता है तब उस का मान दिखलाने के लिये ० यह चिह्न लिखते हैं । (९) = ग इस में यदि अ का मान सर्वदा एकरूप रहे तो स्पष्ट है कि ज्यो २ क घटेगा त्यो २ ग बढ़ेगा इस लिये जो क का परम ह्रास होवे अर्थात् क शून्य होवे तो ग की परम वृद्धि अर्थात् अनन्त होगा ।
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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