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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org परिभाषा | पदों की संख्या मिलके इकट्ठां किई हुई है । जैसा । अ + क यह दिख लाता है कि की संख्या में क की संख्या मिलाई है । और अ + क + ग यह अ, क और ग इन की संख्याओं के योग को दिखलाता है । -- ३ 1 यह चिह्न व्यवकलन का द्योतक, इस को ऋण चिह्न कहते हैं । यह चिह्न जिस पद के आदि में रहता है सो दिखलाता है कि उस केवल पद की संख्या घटाई है । और उस को ऋण पद कहते हैं । क यह दिखलाता है कि की संख्या में क की संख्या जैसा । अ घटाई है । - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -- -घ, (अ + क) + (ग ४ । + + ग घ), {अ + क } + ग घ, वा, [अ + क] + [ग घ] ये सब चारों प्रत्येक दिखलाते हैं कि अ + ककी संख्या में ग घ की संख्या जोड़ दिई है। और+क ग घ, (+क) – (ग + घ) इत्यादि प्रत्येक दिखलाते हैं कि अ + क की संख्या में ग ध, की संख्या घटा दिई है। इस चिह्न को हल और ( ), { } और [ ] इन को कोष्ठ कहते हैं । ये सब प्रत्येक दिखलाते हैं कि अपने अन्तर्गत जो पद हैं वे मिलके एक पद है । -G एक हि अर्थ दिखलाने के लिये एक हुल और तीन कोष्ठ ये चार चिह्न कल्पना करने का प्रयोजन यह है कि जब एक कोष्ठ का काम हो तब तो प्राय: ( ) यही कोष्ठ लिखते हैं और एक के बाहर एक ऐसे अनेक कोष्ठ करने का काम पड़े तब जो एक हि प्रकार का कोष्ठ का चिह्न हो तो कौन कोष्ठ कहां तक है इस का तुरंत बोध न होगा और विजातीय कोष्ट हों तो इस में व्यामोह न होगा । For Private and Personal Use Only जैसा । च - [घ - {ग - ( + क) ) ] यह दिखलाता है कि अ + क की संख्या को ग की संख्या में घटा के शेष को फिर घ की संख्या में घट के इस शेष को न की संख्या में घटा देखो । जो एक हि प्रकार का कोष्ठ का चिह्न हो तो इस अर्थ की शीघ्र उपस्थिति न होगी । इस लिये अनेक प्रकार के कोष्ठ के चिह्न कल्पना किये हैं ।
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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