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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org समावर्तन | यहां लघुषों का महत्तमापवर्तन भी भागा हुआ आवेगा इस लिये इस को उस भाजकरूप केवलपद से गुण देने से वह गुणनफल उद्दिष्ट पदों का महत्तमापवर्तन होगा यह स्पष्ट है । 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यहां लघुपदों का परस्पर में भाग देने में हर एक भाजक जिस पद से निःशेष भागा जाता होगा (जो पद उस भाजक के भाज्य से दृढ हो) उस का भाग दे के फिर उस भागे हुए भाजक से क्रिया को बढ़ाओ और हर एक भागहार में जो लब्धि का वारयोतक भित्र अने के योग्य हो तो भाज्य को ऐसे एक छोटे पद से गुण देओ कि जिस से लब्धि का वारक अभिन्न आवे और जो गुणक रूप छोटा पद भाजक से दृढ होत्रे फिर पूर्ववत् क्रिया करो | 58 इन दो विशेष विधियों को कहने का कारण यह है कि इन से लब्धि अभिनयाती है और इसी लिये गणित में गौरव नहीं होता और इन से महत्तमापवर्तन में कुछ अन्तर नहीं होता इस का कारण यह है । For Private and Personal Use Only क्यों कि अ और मानो कि अब और कघ दून का महत्तमापवर्तन घ है तो और क ये अवश्य परस्पर दृढ होंगे और ग एक राशि से दृढ होतो अघ और कगध इन का महत्तमापवर्तन घ ही होगा कग ये भी दोनों (४५, वे प्रक्रम से परस्पर दृढ होंगे। इस से स्पष्ट है कि जिन दो राशियों का महत्तमापवर्तन निकालना है उन दो राशियों मैं एक राशि को जो किसी तीसरे राशि से गुण देओ वा भाग देओ जो राशि उन दो राशियों में दूसरे राशि से दृढ हो और फिर वह गुणा हुआ वा भागा हुआ पहिला राशि और केवल दूसरा राशि इन का महत्तमापवर्तन निकालो तो भी वह उन दो राशियों के महत्तमापवर्तन के समान हि होता है । अब इस से और (४३) वे प्रक्रम के पहिले अनुमान से विशेष विधियों की उपपत्ति स्पष्ट प्रकाशित होती है । उदा० (१) ६ + २ - ४४ य + १० और २८ + य - १५ इन का महमापवर्तम क्या है ?
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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