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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org ॥४१॥ दीवा० होगी ॥ अपूज्य लोग पूजा पायेंगे ॥ और सत्कारके योग्यगुणवान् लोगसत्कार नहीं पायेंगे ॥ शिष्यगुरुओंका विनय-|| पंचम नहींकरेंगे ॥ गुरूभी शिष्योंकों हितशिक्षादिउपदेश नहींदेवेंगे ॥ और मंत्र तंत्र औषधिः, ज्ञान, रत्न, विद्या, धन, आरेका है आयुः, फल, पुष्प, रस, रूप, सौभाग्य, संपदा, संधैन बलवीर्य, यश, कीर्तिः, गुण शोभा वगैरहः पदार्थोंकी पांचवे स्वरूप आरेमें हानिहोगी ॥ ज्ञानादिधर्महीन होगा वस्तुओंका प्रमाण वगैरहः लोग विपरीतकरेंगे ॥ लोग धर्ममें मूर्ख हो जायंगे ॥ देवोंमें देवत्व सतियोंमें सतित्व ज्ञानियोमें वैराग्य प्रायःअल्पहोगा॥ तपस्वी वांच्छासहित तप करेंगे सत्य, शौच, तप, क्षमादि धमाकी हानि होगी॥ पृथ्वीपर फलवगैरहः कम होवेगे और भगवान् कहते हैं हे गोतम मेरेनिP णसे पंद्रहसैपचास ( १५५०) वर्ष जानेसे गुर्जर देशमें अणहिलपाटननगरमें चैत्यवासियोंका मतका निराकरण४ करनेवाले श्रीवर्दमानसूरिः और उन्होंके शिष्य जिनेश्वरसूरिः सुविहितमार्गके प्रवर्तावनेवालेहोवेगे ॥ खरतरऐसा : F(विरुद ) पावेंगे। उन्होंके शिष्य श्रीअभयदेवसूरिः स्तम्भनकतीर्थके प्रगटकरनेवाले नवांगवृतिकार होंगे। हैउन्होंके पौत्रः श्रीजिनदत्तसूरिः दादाकरके प्रसिद्धहोवेंगे ॥ बहुत श्रावकका कुलप्रतिबोधेगे ॥ मेरे निर्वाणसे . (१६६९) वर्षजानेसे श्रीकुमारपालराजा होगा चौलुक्यकुलमें चंदःसमान महास्त्रवान् अखंड जिनाज्ञाका धार- ॥४१॥ हनेवाला पराक्रमी, दान; कीर्तिः, गुणयुक्त, न्याय, विवेक, धैर्यसहितः सत्त्वगुणसे अद्वितीय होगा ॥ उत्तरदिशिमें | यवन देशतक पूर्वदिशिमें गंगा पर्यंत दक्षिण पश्चिममें समुद्रपर्यंत देशोंको साधेगा ग्यारहसै (११००) हाथी दश ***CASAS REGA For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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