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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A5%255 किं भविस्सइ ! इइ चन्द्र गुत्तस्स रायस्स वयणं सुच्चा भद्दबाहुगणहरो युगप्पहाणो भवोदहि तारगो चन्दगुत्तस्स संघसमक्खं भणइ चन्दगुत्ता सुमिणानुसारेण अत्थं कहेमि तंजहा अर्थः-उसकाल उससमयमें पाडलिपुरनामका नगरथा ॥ उसका वर्णन चंपाके सदृश जानना ॥ उस पाड-15 लिपुरनगरमें पाडलनामका बगीचा होताभया और चन्द्रगुप्तनामका राजाथा ॥ श्रावकपना पालताथा ॥ साधुओंकी सेवा करनेवाला जीवाजीवादिपदार्थों का जाननेवाला यावत हाडहाड़के अंदरकी मीजीप्रवचनके ६ रागसे रंगीभई ऐसा, अन्यदा प्रस्तावमें पक्षीके दिन पोशह किया रात्रिमें सोता भया सोलह (१६) खन्ना देखा| और जगा विचार उत्पन्न हुआ कि खप्नोंका क्या फलहोगा बादमें सूर्योदयहुआ ॥ पोसहपारा इसकाल इस समयमें श्रीसंभूतविजयआचार्यके पदमें विराजमान श्रीभद्रबाहुखामी गणधर युगप्रधान पांचसै (५००) साधुओंके परिवारसहित ग्रामानुग्राम विहार करतेहुये पाडलिपुर नाम नगरका पाडलवनसण्डउद्यानमें समोसरे । चन्दगुप्त राजा कौणिकाजाके जैसा ऋद्धिका विस्तारकरके बांदनेको आया पांचप्रकारकाअभिगमन साचवके मन, वचन, कायाका, एकत्वकरके आचार्यको वन्दना किया ॥ और शुद्धपृथ्वीपर बैठा आचार्यने देशना दिया सुनके बहुत हर्षित हुआ और सोलह (१६) खप्नोंका अर्थ पूछा हे भगवन् आजरात्रिमें धर्मका विचार करता हुआ मैं सोता पश्चिमरात्रिमें सोलह ( १६ ) खनादेखा पहेलेखनमें कल्पवृक्षकीशाखा टूटी ॥१ दूसरे EKASS-1555 For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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