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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | मेरेकों बहुत आश्चर्य हुआ ॥ मुनिः वोले हेमहाराज हाथीकी साकला इंटनी मुशकिलनहीं है किं तु कथा सूतका तंतू टूटना मेरेको मुशकिल मालूम होवे है तब राजाने पूछा हेखामिन् यह कैसा तब मुनिःने सब अपना वृत्तांत कहा ॥ बाद आर्द्रकुमारः मुनिः अभयकुमारः से बोले || हे अभय ? तैं मेरा निष्कारणउपकारी धर्मभाईहुआ || हे | मित्र ? तैने भेजी तीर्थकर की प्रतिमा देखनेसे मैंने जातिस्मरणपाया और जैनधर्म में अनुरक्तभया । ऐसे उपाय बिना मेरेको जैनधर्मकी प्राप्ति कहांथी अनार्यरूपमहाकीचडमें फसाहुआ तैंने मेरा उद्धार किया तेरे प्रसाद|सेही मेरे चारित्रकी प्राप्तिः हुई ॥ तव श्रेणिकराजा अभयकुमारः वगैरहः सबलोग मुनिःको वंदना करके संतुष्टमान | ऐसे अपने ठिकाने गये ॥ तब मुनिः राजगृहनगर के समीप में समवसरे श्रीमहावीरस्वामीको नमस्कार करके और | भगवान के चर्णकमलकी सेवाकरके अपना जन्म सफलकरके क्रमसे आयुः सम्पूर्णकरके मोक्षगये ॥ इतने कहनेकर | श्रीजिनदर्शन महात्मपर आर्द्रकुमारका दृष्टान्त कहा | और भि पर्यूषणापर्व में जो कर्तव्य है वह कहते हैं ॥ तपोविधानादि यथाशक्ति तपमें यत्न करना ॥ उपवास, वेला, तेला, वगैरहः तपकरना ॥ तपकर्तेको जो कोई स्नेहके वससे मना - करे तथापि तपलोपबुद्धिः नहींधारणी श्रीभरतचक्रवर्तीका पुत्रः सूर्ययशाराजाके जैसा, उसका कथानकः यह है ॥ | अयोध्यानगरी में सूर्ययशानामका राजाथा वह तीन खंडका खामी, नीतिवान अखंड आज्ञा जिसकी दुष्टवैरियोंको अपने | वशकिया जिसने ऐसा इन्द्रकादिया मुकुटमस्तकपर धारण किया उस मुकुटकेही प्रभावसे उसराजाकी देवसेवा करतेथे ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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