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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाससे विरक्त हुआ आचार्यके पास दीक्षा लिया क्रमसे गुरुके साथ विहार करताहुवा १ पत्तनमें आया बंधुमती साधवी भी और साधवीयोंके साथ वहाँ आई एकदिन बंधुमती साधवीको देखनेसे पूर्वावस्थाके भोगयाद आए तब उसपर है मेरा राग वधा वह वात मेनें और साधुसे कही उस साधुने प्रवर्तनीसे कहा प्रवर्तनीने बंधुमती से कहा तव बंधुमती खेदा तुरहोके प्रवर्तनीसे बोली जो यह गीतार्थ भी मर्यादा उलंघे तो क्या गती होगी जो यह मुझे देशांतरगई सुनेगा तो भी राग नहिछोडेगा इसलीये हेभगवति में निश्चय मरन अंगीकारकरूं जीससे इसका और मेरा शीयल खंडित नहोवे ऐसा कहके बंधुमती साधवी अनशनकरके श्रुद्धभावसे प्राण त्यागकरके देवगती पायी वाद बंधुमतीकोमरी सुनके मेने विचाराकिया महानुभावा निश्चय व्रतभंगकेभयसेमरी और मेंभग्नव्रतहुं इससे मुझे भी जीनाअच्छानहि । तव मेनेभीअनशनकीया और प्राणत्यागकरके देवताहुवा वहांसे चवके में यहां धर्महीन अनार्यदेशमें उत्पन्नभयाहूं इसवक्त जो मुझे प्रतिबोधाहे वह मेराभाई औरगुरुहे कोई भाग्योदयसें अभयकुमरने मुझे प्रतिबोधाहे परंतु अबतक में मंदभाग्यहुं की अभयकुमरको नहि देखसकुंडं इसकारणसे पिताकी आज्ञा इलेके आर्यदेशजाऊंगा जहांकी मेरा गुरु अभयकुमारहे ऐसा मणोरथ करता हुवा रिषभदेवखामीकी प्रतिमाको ६ पूजताहुवा आर्द्रकुमार रहनेलगा एकदा कुमरने राजासे वीनंतीकीवी हेपिताश्री ! में अपने मित्र अभयकुमरको ६ देखनाचाहताहुं राजाबोला हेपुत्र वहां तुमको जानेकी इच्छा नहिकरनी अपने स्वस्थान स्थितकी श्रेणिकराजाके +SACCESSASACHCCCCESSAR महानुभावा निश्चय प्रतायुद्धभावसे प्राण त्यागकर जाससे इसका और मेरा शारगई सुनेगा For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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