SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अढाहिका व्या. MEA पर्युषणाधिकार NALORERAKASARO का खरूप यहहे-'समता सर्वभूतेषु, संयमः शुभभावना । आतरौद्रपरित्याग-स्तद्धि सामायिकं व्रतं ॥१॥' अर्थसर्व प्राणियोंपर समपरिणामरखना सावद्यसे निवृत्त होना शुभभावनाभावनी आर्तरौद्र ध्यानका त्यागकरने से सामायक व्रत होताहे ॥१॥ औरभी कहाहेदिवसे दिवसे लक्खं देइ सुवणस्स खंडिणं एगो । एगो पुण सामाईयं, करेइ न पहुप्पए तस्स ॥२॥ | अर्थ-रोज रोज लाखखंडीसोनेका दान देनेवाला और एक सामायक करनेवाला उनमें दानदेनेवाला सामा यकके फलको नहिपहुंचे ॥२॥ आदिपदसे पोषधग्रहणकरना पोषहका फलतो यहहे गाथाहै पोषहि य सुहे भावे,-असुहाइंखवेइ नत्थिसंदेहो। छिंदइ निरय तिरिय गई-पोसहविहि अप्पमत्तेणं ॥१॥ अर्थ-शुभभावसे पोषहकरने से अशुभकर्मका क्षयहोताहे इसमें संदेहनहि पोपहकीविधिमें अप्रमादी होनेसे नरकतीयंचगतिका छेदकरे । अर्थात् नरक तिथंच गती में नहि जावे पोषधकी सक्ति नहि होवे तो इस पर्वमें सुश्रावको को यथासक्ति तीर्थंकरोंकी द्रव्यभावपूजाकरनी पूजा का फलयहहेसयं पमजणे पुण्णं,-सहस्संचविलेवणे । सयसाहस्सियामाला, अणंतं गीयवाइयं ॥१॥ अर्थ-तीर्थकरकी प्रतिमाको मोरपीछावगेरेहसे त्रिकरणशुद्धिसें त्रशजीवोंकी रक्षाकेवास्ते प्रमार्जनकरे सो For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy