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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मध्यभागमें चारदिशामें ४ अंजनवर्णा अंजनगिरीपर्वतहै उन्होंमें एकेकके (४) चारदिशाओमें ४ वावडीयेंहे | वावडियोंके मध्यमागमें स्वेतवर्णवाला एकेकदधिमुखनामकापर्वतहे और दोदोवावडीके अंतरमें विदिशामें दोदो| दलालवर्णवाले रतिकरपर्वतहे ऐसे एकेक अंजनगिरीके चोतर्फ ४ दधिमुखगिरी और ८ रतिकरपर्वतहे ये 5 मिलानेसे १२ भऐ और तेरवा अंजनगिरी इस प्रकारसे ४ अंजनगिरीकापरिवारमिलानेसे ५२ पर्वतभये उन्होंके अलग अलग नामकहतेहे अंजनगिरी ४ दधिमुखगिरी १६ रतिकरपर्वत ३२ ऊन्होंपर एकेक जिनभुवनहे ऐसे ५२ जिनभुवनहे उनोजिनमंदिरोंमें १२४ जिनप्रतिमाहे एकेकेमे, सबमिलानेसे चोसठसेअडतालीस (६४४८) जिनबिंबहे वेसवजिनचैत्य ४ दर्वाजोंकरकेसहितसाखतेहे प्रधानतोरणधजा पताकादिक से सोभित और अत्यं-| तसंदरहे वहां देवेंद्र देवदेवियोसे सहित प्रवर्धमानभावसे अट्ठाहिमहोत्सवकरतेहे जल चंदन पुष्प धूपादि | द्रव्योंसे जिनबिंबपूजतेहे जिनगुणगातेहे नाटिककरतेहे इसप्रकारसे ८ दिन महोत्सवकरके अपने स्थानजातेहें| इसीतरह श्रावकोंकोभी श्रीतीर्थकरमहाराजका कहाहुवा यहप!षणापर्वआनेसे धर्ममें यत्नकरना तथा इस पर्युषणापर्वमें श्रावकोका कृत्य कहतेहे यथा आश्रवकषायरोधः, कर्तव्यःश्रावकैः शुभाऽऽचारैः । सामायिकजिनपूजातपोविधानादिकृत्यपरैः ॥ १॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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