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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चातु- लड़की थी। जब पुत्री वरयोग हुई तब चारो भाई सगाई करनेकों गए । चार ठिकाने संबंधकरके आए तब व्याख्या मासिकचारहि वर परननेको आए ब्राह्मणकी कन्या बोली मैं किसको परखें और ४ हि आपसमें लड़ने लगे तब उस : नम्. ॥१२॥ कन्याने चितामें प्रवेश किया तब १ वर तो उसके साथहि जलगया १ विरक्तहोके यात्राको चला गया १ उसकी 8 हडीयो लेके गंगा को गया १ वाहिं झुपडी बनाके रहा जो विरक्त होके गया था उसको १ सिद्धि मिलगई। | उसने आके उस कन्याको जीती करी जो साथ में जल गया था वह भी जीता हुवा गंगा गया था वह भी आगया| ४४ च्यारों विवाद करने लगे कनकमंजरी बोली किसको व्याहेगी वा कन्या, दासीने कहा आपही कहो राणी बोली आजतो नींद आती हे कल कहूंगीराजा औरभी दुसरे दिन आया तब दासीने पूछा बाई कथा का भावार्थ तो कहो तब राणी बोली कि जिसने कन्याको जीवाई वह तो पिता और जो साथहि जला था वह उसका भाई ( साथहि पेदा होनेसे) जो गंगा गया था वह उसका पुत्र और वांहि रहा था वह उसका पति हुआ कारण की जो सेवे सो पावे। ऐसी कल्पित नवी नवी कथा कह के छ महिने तक राजाको अपने महलमें बुलाया तब राजाने बहुत मानकीया तो भी वा तो निरंतर मध्यानमें एकांत बेठके पिताके घरसंबंधी सामान्य वस्त्र पहेरके आत्मनिंदा करे हे आत्मन् ! यह राजमान अथिर हे अहंकार करना नहि तेरे पिताके घरसंबंधी तो यह रिद्धि हे इत्यादि वचनोंसे आत्मनिंदा करती थी तब छल देखती हुई शोकोंने राजासे कहा की यातो आपके ऊपर कामण करती हे तव राजा परीक्षाके CAR-ANKOREGACK For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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