SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आहार १ सरीर सत्कार स्नानादि २ घरका व्यापार काम करना ३ अब्रह्म कुसील सेवना ये चारोंका त्याग ४ | प्रकारका पोषध कहा जावे उसका फल यह है । पोसहियसुहेभावे असुहाइ खवेइ नत्थि संदेहो । छिंदेइ निरयतिरियगइ, पोसहविहि अप्पमत्तेणं ॥१॥ FI अर्थ-पौषधसहित शुभ भावमें रहा हुआ अशुभ कर्मका क्षय करे है इसमें सन्देह नही है नरकतीयंचगतिका छेद करे है नरकतिर्यंचमें नहि जावे पोषहका विधिमें अप्रमादि भया थका १ पोषधव्रत स्थिरमें कामदेवका दृष्टान्त कहते हैं जैसे "कामदेव श्रावक पोषहमें रहा हुआ था इन्द्रने प्रशंसा कीया मिथ्यात्वी देव पिशाच हाथी २ और सर्पका ३ रूप करके बहुत प्रकारसे डराया उपसर्ग किया तो भी मन वचन कायासे बिलकुल चला नहि तब वह देव ६ प्रसन्न होके नमस्कारपूर्वक स्तुति करके अपने अपराधकी क्षमा मांगके इन्द्रकी करीहुई प्रशंसा कहके अपने ठिकाने है गया इति ॥ अब देवार्चनस्वात्रविलेपनानिइसका व्याख्यानकहतेहैं देवश्रीजिनेंद्र उणुकीप्रतिमाका वासक्षेपसै पूजना। मात्र जलादिसे और विलेपन चंदनादिकसे करना ये ३ पदों करके सर्व पूजाका प्रकार सूचन कीया पूजाका दाफल फलसार पयन्ना सूत्रमें इस प्रकारसे कहा है "सयं पमजणे पुन्नं, सहस्सं च विलेवणे । सयसाहस्सिायमाला, अणंतंगीयवाइयं ॥१॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy