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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SACRECCASCALEARN सोमयशा राजाने देखा प्रभातमें सभामें सब मिले और अपना अपना स्वप्न कहा स्वप्नोंका विचारकरके राजादिक सब बोले आज श्रेयांस कुमरको कोई अपूर्व महान् लाभ होगा तब भगवान् भिक्षाके वास्ते फिरते भए श्रेयांसके घरमें आए श्रेयांसस्वामीको देखके हर्पित भया लोग पहले साधुकी मुद्राको नहीं देखनेसे अन्नदानविधिको नहीं जाननेसे भगवान्को मणि, रत्न, सोना, हाथी, घोड़ा, कन्या वगैरहसे निमन्त्रणा करतेभए भगवान् तो उन्हों का दिया हुआ वस्तु कुछभी नहीं लेते भए तब वे लोग मिलके परस्पर कहें भगवान् अपनेपर नाराज भएहैं हमारा ६ दिया हुआ कुछभी नहीं लेते हैं भगवान्ने अपनेको पढ़ाया व्यवहार सिखाया कार्यमें लगाया और पहले बहुत खुशीसे बोलतेथे पुत्रवत् पालन करतेथे अब तो घरआए कुछ लिया नहीं लेना दूर रहा मुखसे बोलेभी नहीं जरूर अपनेपर नाराज भएहैं अब न मालूम क्या होगा इस तरहसे बारह महीनातक लोग कोलाहल करतेरहे एकवर्ष जब गया उसवक्तमें श्रेयांस भगवान्की मुद्रादेखके विचारने लगा अहो ऐसा रूप तो मैंने कोई वक्तमें देखाहै परन्तु है याद नहींआता है ऐसा विचार करते हुएको जातिस्मरणज्ञान उत्पन्नहुआ भगवान्के साथ आठभवका समन्ध जानके आपने पूर्वभवमें साधुपना पाला है यह जानके विचारने लगा अहो कैसा यह अज्ञानहै संसारीजीवोंके, जिससे लोग कोलाहल करते हैं यह भगवान् तीनलोकका राज्य तृणके जैसा मानता हुआ विषयतृष्णाका त्याग करके संसारिक सुखको जहरके फल तुल्यमानते भए साधुपना अंगीकार करके मोक्षःसुखके वास्ते यत्न करते भए For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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