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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CROCHECRUSSACRORSCOCOCOM परस्पर डालना स्त्री वगैरह का वस्त्र खींचना गधेपर पुरुषको चढ़ाकर विडंबनाकरना इत्यादि यह सर्व अनर्थ दंड जानके धार्मिकोंको त्याग करना जो धर्मीलोगहैं वह तप रूप जागृत अग्निःसे कमरूपकाष्ट छानोंकों भस्मीकरणरूप भावहोली करतेहैं शोभनध्यानरूपी जलसे परस्परखेलते हैं ज्ञानरूपगुलाल उड़ाते हैं समता रूपकेसरकी पिचकारीसे भारमतेहैं ॥ स्वाध्यायरूपगीत गान करतेहैं इसप्रकारसे भावहोलीकरके अपना जन्म सफलकरते हैं प्रश्न ये लौकिक होलीपर्व किसकारण प्रवर्तमानहुआ ॥ आचार्य उत्तर कहतेहैं सम्प्रदायगम्य कथानकहै ॥ पूर्व देशमें जैपुर नामका नगरहै वहां जयवर्मा नामका राजा मदनसेना पटरानी और मतिचंद्र नामका मंत्री उसीनगरमें मनोरमनामका एक सेठ रहताथा उसके चार पुत्रोंके ऊपर अत्यन्त रूपवती होलिका नामकी पुत्री उसको बहुत उत्सबके साथ पिताने धनवान् सेठके पुत्रको परणाई ॥ परन्तु कर्मके वशसे विधवा भई सर्वदा पिताके घरमें रहे अन्यदागवाक्षमें बैठीभई होलिकाने वंगदेशका खामी भुवनपाल राजाका पुत्र कामपाल कुमरको देखके कामपीड़ितभई कुमरभी : होलिकाको देखके अत्यन्त कामव्याप्त हुआ तब सेठ पुत्रीको गुप्त पीड़ासे पीड़ित देखके दुःखी हुआ बहुत उपाय किया परन्तु होलिका तो दुर्बल होतीभई बहुत इलाज किया औषध, भेषज, मंत्र, तंत्र करनेसे कुछभी गुण भया है नहीं सेठ पुत्रीके दुःखसे दुःखी भया बाद उसनगरमें एकढुंढा नामकी परिव्राजकनी रहतीथी ब्राह्मणके कुलमें उत्पन्नभई चन्द्ररुद्र भाण्डकीपुत्री अचलभूती भरडेकीस्त्री नगरमें प्रसिद्ध कूड़ कपट करनेवाली लोगोमें झाड़ा झूड़ा ऊ For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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