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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AGRAMSANSAAMADARSA प्रगट भये राजा अतीवहर्षप्राप्तभया धर्मका महिमा देखके हुल्लास पायाहै चित्त जिन्होंका विशेष करकेधर्म कर-है नेमें प्रवर्तमान् हुआ बाद सोहलवें महीने में गुणसुंदरीका पाणिग्रहण किया ॥ और बहुतराजकन्याओंका पाणिग्र-17 हण किया वाद अनंतवीर्य राजा कुंमरको राज्य देके गांगिलमुनिःके पास चारित्र लेके निरतिचारचारित्रपालके|8 श्रीशनंजयतीर्थपर अनशन करके मोक्षगए वाद पिंगलराजा नीतिसे राज पालता भया और तेरहवर्षतक मेरु त्रयोदशीको आराधके अंतमें उजवणाकिया ॥ तेरह जिनमंदिर कराया तेरह सुवर्णकी प्रतिमा तेरह चांदीकी प्रतिमा तेरह रत्नकी प्रतिमा करवाई तेरह प्रकारके रत्नोंका पांच मेरुकरवाके चढाए तेरह वक्तसंघसहित तीर्थयात्रा किया तेरह साधर्मी वात्सल्य किया इसप्रकारसे बहुत ज्ञानभक्तिःकिया तेरह पुस्तक वगैरहः करवाके चढ़ाया बाद कितने पर्ववतक व्रतसहित राज्यपालके महसेन कुमरको राज्य देके श्रीसुव्रताचायके पासमें बहुत पुरुषोंके साथ दीक्षा ग्रहणकरी बारह अंग अध्ययन करके चौदह पूर्वधारी हुए क्रमसे आचार्य पद पाया बाद क्षपक श्रेणीचढनेके लिये आठवें गणस्थानको शुक्ल ध्यानका पहला भेद ध्याते भये ॥ बाद क्रमसे कर्म क्षय करतेहुए बारहवें गुणहै स्थानकके अंत समयमें सर्वघाती कर्मका शुक्लध्यानका द्वितीय भेद ध्यानेसे क्षय करके तेरहवें गुणठानेके प्रथमसमयमें केवलज्ञान पाके बहुत भव्योंको प्रतिबोधता भया पृथ्वीपर विहार करता हुआ ॥ बाद वहत्तर पूर्वलाखवर्षका सयुः पालके योगनिरोधकरके पांचहखअक्षर उच्चारणकाल प्रमाण चौदहवें गुणठानेमें रहके शेष चार कर्मका AAAAAAAAAAAA***** For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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