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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दीवा० व्याख्या० ॥ ७० ॥ ७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थः-श्रीयुगादिदेवको नमस्कार करके गुरूकी वाणीका ध्यान करके मेरुत्रयोदशीका व्याख्यान लोकभाषासे कहता हूं | यहां पर्वाधिकार में आठ महां प्रतिहार्य विराजित जगद्गुरू श्रीवर्धमानस्वामीने श्रीगौतमादिकके आगे जैसे माघवदि त्रयोदशीका माहात्म्य कहा || वैसा परंपरा से आया हुआ हमभी मेरुत्रयोदशीका अधिकार कहते हैं || श्री ऋषभदेवखामी और अजितनाथखामी के अंतरमे पचास लाख करोड़ सागरोपमगए उसके मध्य में | अयोध्यानगरी में इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगोत्रीय अनंतवीर्य राजा भया ॥ बहुत हाथी घोड़ा रथ प्यादल सेनाका स्वामी उसराजाके पांचसै रानियां थी उन्होंमें पदमनी नामकी पटरानीथी धनंजयनामका चारबुद्धिका निधान महामंत्रीथा सुखसे राज्य पालतां एकदा प्रस्तावमें मनमें महाचिंता उत्पन्नभई कि मेरे एकभी पुत्रनहीं है इसराज्यका कौन खामी होगा । पुत्रविना घर शून्य प्रायहै ॥ कहाभी है ॥ अपुत्रस्य गृहं शून्यं इत्यादि ॥ तब राजा अनेक उपाय किया परंतु पुत्रोत्पत्ति नहीं भई ॥ उस अवसर में एक कौंकण नामका साधु अहारके लिये राजाके घरमें आया तब राजा रानी उठके विधिःसे वंदना करके शुद्धआहारसे पड़िलाभ के हाथ जोड़के मुनिको पूछा हे खामिन् हमारे पुत्र नहीं है सो होयगा या नहीं ॥ मुनि बोले ज्योतिष निमित्तादिक For Private and Personal Use Only मेरुत्रयोदशीका व्याख्यान. 1100 11
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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