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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीवा० भगवान्को बांदनेके लिये और उपदेश सुननेको राजा वगेरेह, लोग आए ॥ भगवान्को तीन प्रदक्षिणा देके | पौषव्याख्या05/ वन्दना नमस्कारकरके यथा योग्यस्थानबैठे ॥ तब खामीने संसार समुद्र में डूबते हुए प्राणियोंका उद्धार करने-13 दशमीका दवाली ॥ देशना प्रारंभकरी ॥ व्याख्यान, जीवदया विरमिजइ, इंद्रियवग्गो दमिजइ सयावि।सच्चं चेववदिजइ,धम्मस्स रहस्स मिणमेव ॥१॥ अर्थः-भगवान् कहते हैं अहो भन्यो जीवदयामें रमण करना निरंतर इन्द्रियवर्गको दमना और सत्यही बोलना है 8/धर्मका यह रहस्य है इत्यादि देशनासुनके कितनेक लोग भद्रकभये ॥ कितने लोगोंने श्रावकधर्म अंगीकार टू किया ॥ कितनेक साधु भये तब गौतमखामी श्रीमहावीरखामीको वन्दना करके प्रश्न किया ॥ हेखामिन् पौषटू दशमीपर्वका माहात्म्य कृपा करके कहो ॥ तब भगवान् बोले हेगौतम पौषदशमीको श्रीपार्श्वनाथस्वामीका है जन्मकल्याणकहै ॥ इसदिन दोनोंसन्ध्यामें प्रतिक्रमण करना ॥ देववन्दनकरना ब्रह्मचर्यः पालना जिनमंदिरमें| |अष्ट प्रकारी पूजा सत्तरह प्रकारकी पूजा स्नात्र महोत्सव वगैरहः बडे आडंबरसे करके गुरूकेपास जाके बन्दना ॥६५॥ ६ करना ॥ और उपदेश सुनना बाद घरजाके साधुओंको पडिलाभके एकाशना करना ॥ नौमी और एकादशी-18 है कोभी एकाशनाकरना ॥ भूमिःपर शयन करना ऐसे दशवर्ष करनेसे तप सम्पूर्ण होवे है ॥ और दशमीके दिन है HISTORIGROSSESSES SANGACAREERSEARCCESS For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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