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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीवा० व्याख्या ॥५८॥ @जयकी यात्रा करनेसे बहुतलाभ होवेहै । सौसागरप्रमाणे नरकयोग्य कर्मका नाश होवेहै ॥ ब्राह्मण स्त्री, मौन एकाबालक, ऋषिः इन्होंकी हत्याके पापसे छूटेहै । इसलिये कार्तिकी उपवास करके यात्रा करना परम श्रेयहै ॥ दशीका कदाचित् यात्रानहीं करसकेतो बड़े आडंबरसे शत्रुजयकेसामने श्रीयुगादि देवकीप्रतिमा रथमें स्थापके रथयात्राकरे॥ व्याख्यान, मात्रपूजा महोत्सवादि करनेकर चैत्यवंदन खमासमण वगैरहः विधिः करनेसे बहुतकर्मकी निर्जरा होवेहै ॥ बहुत पुण्यवृद्धिः होवेहै । इस कारणसे कार्तिक पूर्णिमाके दिन पूजा, प्रभावना, पौषधादि करनेकर दिन सफल करना॥5 पर्व आराधन करनेसे प्राणी कल्याण पावेहै । इतने कहनेकर कार्तिकपूर्णमासीका व्याख्यान समाप्त हुआ। अब मौन एकादशीका व्याख्यान लिखते हैं। अरस्य प्रव्रज्या नमिजिनपतेर्ज्ञानमतुलं, तथा मल्लेर्जन्मव्रतमपमलं केवलमलम् । वलौकादश्यां सहसि लसदुद्दाम महसि, क्षितौ कल्याणानां क्षिपतु विपदः पञ्चकमदः ॥१॥ अर्थः-अठारहवां अरनाथतीर्थकर ने दीक्षालिया ॥ इक्कीसवां नमिनाथखामीको केवलज्ञानउत्पन्न हुआ अनुपम और उगणीसमा मलिनाथखामीका जन्म मलरहितदीक्षा निर्मल केवलज्ञान उत्पन्न भया कैसा केवलज्ञान ॥५०॥ सर्वद्रव्यगुणपर्याय जानने में समर्थ ॥ तेजवान मगसरसदी ग्यारसको पांच कल्याणक हुआ ॥ सो विपदाको दूरकरो ॥ कल्याण पर्णिमा रिहः विधि, SARAMERASACSCGARCASE ALLACKल - For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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