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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीवा. 13/दोनों भाईयोंने वैराग्यसे दीक्षालिया ॥ छोटा वसुदेवचारित्र पालताहुआ सब सिद्धान्तका सार अध्ययन किया ॥ज्ञानपंचमी व्याख्या गुरूने वसुदेवको आचार्यःपद दिया ॥ वसुदेवाचार्यः पांचवें साधुओंको वाचनादेवे ॥ एकदा वसुदेव आचार्य के व्याख्यान. है शरीरमें रोग भया संधारेपर सोते हुएथे एकः साधु आके सूत्रका अर्थ पृछा गुरूने अर्थ कहा वह साधु गया है ॥५३॥ उतने दूसरा साधु आया उसकोभी अर्थकहा ॥ ऐसे बहुत साधुआके पृछ पूछकेगये ॥ तव आचार्यको निद्रा ६ आतीथी किसीसाधुने पूछा हे भगवन् इसके आगेका पदकहो इसका अर्थभी कृपाकरके कहना ऐसा सुनके 8 *आचार्यने मनमें विचार किया अहो मेरा बड़ा भाई कृतपुण्य है मूर्ख होनसे कोईनहीं पूछताहै ॥ अपनी इच्छामाफक भोजन करताहै सोताहै ॥ इसीसे मूर्खपने में बहुतगुणहै ॥ कहाभीहै ॥ मूर्खत्वं हि सखे! ममापि रुचितं तस्मिन् यदष्टौ गुणा,निश्चिन्तो बहुभोजनोऽत्रपमना नक्तं दिवाशायकः। कार्याकार्यऽविचारणान्धबधिरो मानापमाने समः, प्रायेणाऽऽमयवर्जितो दृढवपुर्मूर्खः सुखं जीवति ॥१॥ ___ अर्थ:-हे सखे मूर्खपना मेरेकोभी रुचाहै ॥ इसमें आठ गुणहै ॥ मूर्ख निश्चन्त रहताहै १ बहुत भोजन करताहै ॥५३॥ २ रातदिनमें बहुत सोताहै ॥ ३ कार्याऽकार्य विचारने में अन्धा और बहिरेके जैसाह ४ मान अपमानमें सरीखा रहताहै ५ प्रायः रोगरहित होताहै ६ जिसको लजा नहीहोतीहै ७ शरीर मजबूत होताहै ॥ ८ ऐसा मूर्ख सुखसे For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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