SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ॥ ३ ॥ www.kobatirth.org प्रस्ता व ना. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 000 आजथी लगभग आठ महिना पहेला अमारा पू० उपाध्यायजी श्रीमान लब्धिमुनिजी महाराज साहेबे तेमने पोतानी रचेली लोकबद्ध द्वादशपर्व कथानी बीजी आवृत्ति बहार पडे ते माटे पोतानी ईच्छा प्रदर्शित करी. कारणके जे पहेली आवृत्ति बहार पडी हती तेनी लगभग नकलो खलास थइ गइ हती अने साधु-साध्वीओनी मांग बघती जती हती. आ कारणने लइने अमारा गुरुवर्यं अने आ कथाओना संशोधनकार श्रीमान गणिवर्य श्री बुद्धिमुनिजी महाराजे पोतानी नादुरस्त तबियत होवा छतां पण उपाध्यायजी महाराजनी आज्ञाने मान आपीने आ कथा फरीथी छापवा माटे प्रेसमां मोकली अने तेनुं संशोधन कार्य पोते चालु कर्यु. शरुआतमां तो कार्य बराबर चाल्युं पण ६-७ कथाओनुं संशोधन कार्य थया पछी तेमनी तबियत विशेष बगडी तेथी तेओश्रीए कपुरचंदजी मास्तरने आ कार्य सुप्रत कयुं छतां पण प्रेसमांथी ज्यारे त्रीजी वखत फारम आवतुं त्यारे तेओ पोते जाते जोई जता अने त्यारपछी ज छापवानुं ओर्डर आपता. आवी रीते कार्य चालतु हतुं त्यां ओचींती श्रावण सुद ४ थी तबियत विशेष बगडी अने अशक्ति खुब बघती गई छतां पण आवेली वेदनाने ते ओश्री समभावे सहन करता हता. आम सहन करता करता गत श्रावण सुद ८ ना श्री पार्श्वनाथ भगवानना निर्वाण कल्याणकने दिवसे सिद्धक्षेत्र पालीताणा कल्याणभुवनमां सवारना ३ ||| वागे सावधानपणे नवकार महामंत्रनुं स्मरण करता करता अने अनित्य भावना भावतां भावतां तेओश्रीनो आत्मा आ नश्वर देहनो त्याग करीने स्वर्ग भुवनमां गयो । For Private and Personal Use Only ॥ ३ ॥
SR No.020324
Book TitleDwadash Parvkatha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar Gani
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1962
Total Pages127
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy