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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra द्वादशपर्वकथा-संग्रह ॥ ११५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तो पंचधाविसहिओ, पालिज्जतो विबुद्विमुवणेइ । जाओ पंचवरिसो, नेसाले पडिओ तईया ॥ ६२ ॥ सो सव्वकलाकुसलो, जाओ वरिसत्तिगम्मि तो पच्छा। साहुसमीवम्मि डिओ, छन्विहमावस्सयं भणइ ॥ ६३ ॥ सम्मत्तं नवतत्तं, कम्णद्वयपय डिअट्ठावन्नस । बारसवयाई सम्मं, जाई पाले निच्चपि ॥ ६४ ॥ जुब्वणसमए पिणा, महिढियाणं समागया कन्ना । इकारस परिणाविय, तओ सुकयस्थो पिया जाओ ॥ ६५ ॥ सिरिकंता १ पउमसिरी २, पउमलया ३ गंगया ४ य तारा ५ अ । सृज्जसिरी ६ वन्नसिरी ७, रंभा ८ पडमा ९ गउरि १० गङ्गा ११ ।। ६६ ॥ घरभारं च समगं, समपिऊणं तओ पच्छा। चिंताव्वारविमुको, धम्मं सो कुणई निच्चपि ॥ ६७ ॥ अह अनया कयाई, वुढत्ते अणसणं च काकणं । मरिकगं संपतो, समिद्धिदत्तो दिवं तईया ॥ ६८ ॥ गिहसामी संजाओ, सुव्वयसिट्ठीय कोयमज्झम्मि । इकारकोडिसामी, उवउत्तो कुणइ ववसायं ॥ ६९ ॥ अह अन्नदि सिरिधम्म - घोसरी वणम्मि संपत्तो । सो नयररायसहियो, वंदणयत्थं गयो तत्थ ॥ ७० ॥ सव्ये लोया हरिसेण, पूरिया वैदणागया तत्थ । वंदणपुव्वं सव्वे, उबविट्ठा धरणिपीढम्मि ॥ ७१ ॥ तो धम्मघोससूरी, देसणदाणं करेइ भवियाणं । दाणं सोळं च तवो, भावणभावं कहइ सव्वं ॥ ७२ ॥ उवएसम्म य मज्झे, पव्वतिहि वियारवण्णियम्मि तया । इक्कारसितव चरणं जायं सुच्चयसिट्ठिस्स ॥ ७३ ॥ तईया सुव्वयसिडो, इक्कारसिं सुणिय मुच्छमावन्नो । पुव्यभव विहियगारसिं, जाईसरणेण जाणेई ॥ ७४ ॥ तो परिवारेणं चिय, सो उवयारेणं सुत्थियो कओ । सुव्वयसिट्ठी साह, भयवं ! पुन्त्रभवं संभरियं ॥ ७५ ॥ For Private and Personal Use Only सुव्रतश्रेष्ठी कथा ॥ ११५ ॥
SR No.020324
Book TitleDwadash Parvkatha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar Gani
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1962
Total Pages127
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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