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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. बीजे ठेकाणे मुक्यो तो है शश तुं दडो उपाडीने गाममां केम न आणे.? एमां कांह अशंभव नथी.१ , तथा श्रीकृष्णे शात दीवश गोवरधन पर्वत उपाडयो तो तुं तेलथी भरेलो दो शावाशते न उपाडे ? // 2 // . वली शमुद्रमा शेतुबांधती वखते वानराओएं अनेकयोजनथी वृक्ष उखेडी आणया तो तारो छोकरोवृक्ष उखेडी नाखे तेमा शुं आश्चर्य जाणवो.३ वली अशोकवनमां हनुमान नामना वानरायें अनेक अशोक वृक्ष उखेडी नाख्या जो ए वातो शत्यछे तो तारो पुत्र वृक्ष उखेडी नाखे. एमा शी मोटाइ जाणवी. // 4 // इति धुर्ताख्याने चतुर्थमाख्यानकं प्रश्नण्यास-- हे खंडपाना, हवे तमे जे अनुभव्युं होये ते कहो ? नुत्तरखंडपाना-तमे सर्वे मारे पगे लागो तो हुँ सर्वने भोजन आपुं. शस--भोजनने वास्ते अमे मोटा पुरुष तारा आगल दीनथइ पगे केम लागीएं. ? For Private and Personal Use Only
SR No.020314
Book TitleDhurtakhyan
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages58
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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