SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यानः स्त्रीने विलाप करती जोईने पुछवाथी पोताना पुत्रने परलोके गयानां समाचार जांणी, पवन कोपायमान थईने पाताळमा पेसीरयो,पछीपवनने नीरोधे देवताओ तथा सर्व जक्तवासी जीव अती आकुळ व्याकुछ थईने मरण पामवा लाग्या, पछी सर्व देवो पाताकमां जईने पवनने मनावी लाव्या; अने चुर्णीत सर्व अंगोपांग एकठाकरी हनुमंतने जीवतो कयों, अने. सर्व ठेकाणे सांधता एक हनुनो अंस जडयो नही. तेथी एक हनुए रहित छे, माटे तेनुं नाम हनुमंत पाडयो. हवे जो पवनना पुत्रने चूर्ण कर्यो, ने ते पाछो जीवतो थयो ते सत्यछे, तो तें कडं जे हूं जीवतो थयो तो ते पण सतज छे. 4 वळी एक उदाहरण कहुंछं ते सांभळ. राम अने रावणनो माहा युद्ध थयो, ते वखते रावणना शुभटे खड्ग बाणादी प्रहारे करीने, अनेक वानरोना अंग छेद्यां अने लक्षमणने रावणे शक्ती पाणनां प्रहारे करीने भुमी उपर पाडयो, तेथी रामचंद्रे शोकातुर थईने विलाप करवा मांडयो, ते वखते हनुमंतें For Private and Personal Use Only
SR No.020314
Book TitleDhurtakhyan
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages58
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy