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Acharya Shri
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risgauti Gyanmandie
गणधरवादः
श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥२९२॥
MINISTRATISHTHANIMATIHANI
काउं । सायं पहू अभावियपरिसाइवि कुणइ धम्मकहं ॥शा जो-सव्वं च देसविरई संमं पित्थइ व होइ कहणाओ । इहरा अमूढलक्खो न कहेइ भविस्मइ न तं च ॥४॥ चउविहसुरपरियरिओ रयणीए वारजोयणेहिं तओ। पत्तो मज्झिमपावा बहि महसेणयवणुजाणे ॥ ५ ॥ तहिं भुवणवईवंतरजोइसवेमाणिआवि ओसरणे । सविडोइ सपरिसा कासी नाणुप्पयामहिमं ।। ६॥ तत्थ किर । सोमिलजोत्ति माहणो तस्स दिक्खकालंमि ! पउरा जणजाणवया समागया जनवाडमि ॥७॥ तह इंदभूतिऽगणिभूइवाउभूइवियत्तय सुहम्मा। मंडियमोरियपुत्ता अकंपिओ अयलभाया य ।।८।। मेयजपहासा इय इगार वेयाइविउ महुज्झाया। उन्नयविसालवंसा समागया जन्नवाडं तं ॥९॥ तं दिवदेवघोसं सोऊणं माणवा तहिं तुहा । अहो जनिएहिं जुड़े देवा किर आगया इहयं ॥१०॥सोऊण कीर-| भाणि महिमं देवेहि जिणवरिंदस्स । अह एइ अहंमाणी अमरिसिओ इंदभूइत्ति ॥११॥ मोत्तूण ममं लोगो किं धावइ एस तस्स पामूलं । अन्नोऽवि जाणइ मए ठिअंमि? कत्वोच्चयं एयं ॥१२॥ वश्चिज व मुक्खजणो देवा कहऽणेण विम्हयं नीया । वंदंति संथुणंति य जेणं सबन्नुबुद्धीए ॥१३॥ अहवा जारिसउच्चिस सो नाणी तारिसा सुरा तेऽवि । अणुसरिसो संजोगो गामनडाणं व मुक्खाणं ॥१४॥ काउं हयप्पयावं पुरओ देवाण दाणवाणं च । नासेहं नीसेसं खणेण सबन्नुवायं से ॥१४॥ इय वुत्तूर्ण पत्तो दटुं तेलोकपरिवुडं वीरं । चउतीसाइसयनिहिं स संकिओ चिडिओ पुरओ ॥१५|भणियं च-"साक्षादृष्टेन्द्रभूतिः समवसृतिभुवोभूषणस्यांतिकस्थानायातानंगनाभिः सह विबुधवरान् पंचवर्णैर्विमानैः। रूपं चाश्चर्यरूपं जगति दश दिशो भासयन स्फारकांत्या, तस्थौ | क्षोभात् सशंको मुनिपतिपुरवो झकिमेव किमेव १ ॥१७॥ हे इंदभूइ गोयम सागयमुत्ते जिणेण चिंतेइ । नामपि मे विमाणइ अहवा को मं न याणेइ ?॥१८॥ जइ वा हिययगयं मे संसयमुनिज अहव छिंदिजा । तो हुन्ज विम्हओ मे इय चिंतंतो पुणो
॥२९॥
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