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Acharya Shri Kaita:
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बन्दना
मेदाः
चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥१९॥
| विहिकहणं वा अच्छउ चिइवंदणाइ दूरेण । पाढोवि तीइ देइ उ अहिगारिणो अपुणबंधाई ॥१७॥ दिक्षा उ अणहिगारिणि अविहिअवबाइसेवणा जस्स | दुपउत्तओसहंपिव होइ अकल्याणजणगत्ति ॥ १८ ॥ तम्हा उ अपुणबंधगअविरयविरएहि होइ कायद्या। विहिउचिरवित्तिबहुमाणभत्तिकलिएहिं सयकालं ॥ १९॥ साहूहिं गिहत्थेहि अ अणमचिद्वेहिं जत्तकलिएहिं । जहसंभवं गिहीहिं कयजिणपूयोवयारेहिं ॥२०॥ तह दरभावमेया दुहा इमा दवओ पुणो दुविहा । अपहाणा य पहाणा हेऊमावस्सिह पहाणा ॥२१॥ तत्य पहाणा एसा होउ पुणो अपुणवंधगाईणं । अपहाणच्चि सेसाण इत्थ सइबंधगाईणं ॥२२॥ ताण सइबंधगाणं मग्गामिमुहाण मग्गवडियाणं । इयराणवि अपहाणा चिइवंदण दव्वओ होइ ॥ २४ ॥ उवओगअत्थचिंतणगुणराया लाहविम्हओ चेव । लिंगाणि| विहिअमंगो मावे दवे विवजइओ ॥२४॥ वेलाविहाणतग्गयमणतणुवयणाणि तह य लिंगाणि । रोमंचभावबूडीइ भावचिहवंदगाइ भवे ॥२५॥ सुत्ते एगविचित्र भणिआ दो णेगसाहणमजुतं । इय धूलमई कोई ममइ सुत्र इमं सरिउं ॥२६॥ तिनि वा कडई जाव, धुइओ तिसिलोइया। ताव तत्थ अणुमायं, कारणेण परेणवि ॥ २७॥ मणइ गुरू तं सुत्तं चिइवंदणविहिपरूवर्ग न भवे । निक्कारणजिणमंदिरपरिभोगनिवारगचेण ॥ २८ ॥ जं वासदो पयडो पक्खंतरसूयगो तहिं अस्थि । संपुन वा बंदइ कडुइ वा तिनि उ थुईओ ॥२९॥ एसोवि हुमावत्थो संभाविजइ इमस्स सुत्तस्स । तो अनत्थं सुतं अमत्थ न जोइउं जुत्तं ॥३०॥ किंच-जइ इत्तियमित्तं चिअ जिणवंदणमणुमयं सुए हुतं । थुइथुत्ताइपवित्ती निरत्थिया हुज सहावि ॥३१ ।। अन्नं च-गीयत्था विहिरसिया संविगतमा य मरिणो पुरिसा । कह ते सुत्तविरुद्धं सामायारिं परूविति ॥ ३२ ॥ अहवा चिइवंदणया निच्चा इय|रिति होइ दुविहा उ । निचा उ उभयसंझं इयरा चेइयगिहाईसु ॥३३॥ निचा संपुनच्चिय इयरा जहसत्तिओ उ कायदा । तधि
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