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________________ Shrik ein Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila Gyanmandir देवदत्तकथा श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥१०॥ MPITIANSITIOICTIMATIL | सा पवजेइ ।।२१।। अह निसि वसंतसेणा रितं कलसं निएवि सुमिणमि। साहेइ मंतिणो सोऽवि आह नणु तुह सुओ होही ॥२२॥ सा भणइ किंतु रित्तो कलसो ? सो आह किंपि नहु एयं । तयणु इमा तुट्ठमणा तं गम्भं दहइ सुहसुहओ ॥ २३ ॥ काले सुयं पसूया दुवालसाहे करेवि जममहं । बालस्स कयं नाम जणएहिं देवदत्नुत्ति॥२४॥ तं पत्तजुवगगुणं मंतिवरिहो उ चंदसिहिस्स । सोमामिहध्याए पाणिग्गहणं करावेइ ।।२५।। अनमि दिणे रन्ना अवराहं किंपि पयडिउं लोए । उद्दालिऊण मुई मंती गुत्तीइ पक्खिसो ॥२६ विविहं तज्जाविजइ कारिजइ लंघणाई बहुयाइं । परपरिभवदवदडो मंती चित्ते विचिंतेइ ॥२७॥ वरमरिसदनेभ्यो भिक्षया प्रागवृत्तिवरमटविनिवासो हालिकत्वं वरं च । वरमसमजनानां भृत्यभावप्रपत्तिस्तदपि नरपतीनां माऽधिकारेण लक्ष्मीः ॥२८॥ अधिकाधयोऽधिकाराः कारा एवाग्रतः प्रवर्तते । प्रथमं न बंधनं तदनु बंधनं नृपतियोगजुषाम् ।।२९।। लद्धेणवि भुत्तेणवि दिनेणवि किं सुएण अत्थेण ? । निवडइ विडंबणा जस्स एवमसमाऽवसाणमि ॥ ३० ॥खंडुच्छुसकराणवि रसं विसेसेइ पढमसंमाणो । रनो अंते सोच्चिय विसं विसेसेइ तालउडं ॥ ३१ ।। अह दिनसव्वदवो सुद्धो दिवेण गुत्तिओ रना । मुको सगिहे | पत्नो मंती वुत्तो पियाइ इमं ॥३२॥ पूरिजंती रित्ता भरिया रित्ता भवंति इह पुरिसा । भमिरारघघडियव्य किंनु ता चित्ततावेण ?।। ३३ ।। अविय-नणु कस्स थिरा लच्छी ? पुन्ना सवे मणोरहा कस्स ? । को वल्लहो निवाणं ? निच्चं कस्स व सुहं इत्थ? ॥ ३४ ॥ मंत्री-दइए ! अयंडपडिए दुक्खे खलु होइ चित्तसंतावो । पुत्रविणिच्छियपडिए को तस्स हविज अवयासो ॥ ३५ ॥ वसंतसेना-कह निच्छओ इहासी, मंत्री-एयं कहियं तया उ देवीए । वसंतसेना-ता किं तणएण विणा न सारिअं अञ्जउत्त! तए ?॥३६।। मंत्री- जेण पावियवं इट्ठमणिटुं पहुत्तमपहुत्तं । तं पुण होइ अवस्सं निमित्तमित्तं परो होइ ।।३७॥ जंपइ अभिट्ठहउँ MPCATIHARIHARA M AITRINA ॥१०२।। HANIHIMSHILIA For Private And Personal
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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