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श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥९७॥
IN HINDI
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वजनाहबाहुसुबाहुपीढमहपीढा । सबट्टि भरहि जिणचक्कि भुयबली थीदुर्ग होही ॥ १.२॥ तो सहरिसं सरहसं उत्तरियमणुत्तरं नमिविनतिलोयपहुं । नमइ तिपयाहिणं सो पयाहिणं दिजमाणगुणो ॥१०३।। कुमलो कोसल्लागय इकखुरसं सुहरसं सुहासरिसं । पारावइ मिवृत्तं जयनाहं पणदिव्याविन्भवसणाहं .१०४।। कहमेयं ते नायं ? तत्थ तयागयनिवाइणा पुट्ठो। सिजंसो भणइ अहं भमिओ पहुणा सहऽभवे १६।। तेहिं कहति पवुत्ते भणइ इमो धाइखंडदीमि। पुत्र विदेहे पुवेग मंगलावइयविजयंमि ॥७॥नागिलनागसिरिसुया सत्त सलक्खण सुमंगला धन्नी । सुब्भी उम्भी छाडी निनामिय नंदिगामंमि ॥८॥ घण वरभोयण माउय पिट्टचरतिलयगिरि फलत्थगया । मूरिजुगंधरदुहपुच्छ चउगइ धम्मं च बंभधरा ।।९।। अणसण ललियंग नियाण सयंपहेसाण सिरिपहविमाणे पुंडरिगिणीड़ जिणचकिवइरसेणस्स गुणवइए ॥१०॥ सिरिमइघिय सुरदंसण जाइसरण मउण भंडिगा चित्तं । जिणवरिसमहे लोहग्गलसामिवनजंघपरिणयणं ॥११॥ सरवण सुसाहुदाणं सुय विसधृमियगिहुत्तर सुहंमे। वच्छावई पहंकरपुरी अभयघोस विजसही ॥१२॥ पन्नवणि पुन्न केसव मुणिजागर दिक्ख अच्चुयसमाणा । पुंडरिगिणीइ वजनाह सारही दिकख सबढे ॥१३॥ जिणवइरसेणपासे सुयंति भरहे जिणो वइरनाहो । होही पढमोति तं तं दट्ट पहुं मे सुमरियं तं ॥ १४ ॥जओ-सवेवि जिणा इगदेवदूसरूवे हवंति जिणलिंगे। न य अन्नतिथिलिंगे न साहुलिंगेन गिहिलिंगे ॥१५।। निमामि ललिंग सयपह१ सिरिमइ वनजंघुर नर सुहमे ४। केसवऽभयघोसा५ च्चुय६ सारहि वजनाह७ सबढेदा॥११६।। तेऽवि तओ सुयविहिणा भत्ता भत्तीइ दिति भत्तीई। पहुपयठाणे पीढच्चणादिगरमंडलपसिद्धी ॥१७|| रहचकवालनयरे णमी ठिओ उत्तराइ दाहणओ। सिरिगयणवल्लहपुरे विनमी पुण धरणवयणेण ।।१८॥ सब्वेसुवि नयरेसुं नमिविनमीहि फरतभत्तीहिं । ठविओ सिरिरिसहजिणो धरणिंदो नागराया ||९७ ॥
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