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________________ Shri M श्रीदे० चै त्यो धर्म ० संघाचार विधौ 11 28 11 Aradhana Kendra www.kobatirth.org तुं सत्थसत्थिया पत्ता । कहइ वणी तो भो इह जिमिज तं एज जाव तडं ॥ २८ ॥ तो तणविलग्गो आगच्छंतो कमाइ स निसीहे | सुत्तविउद्धो पिच्छइ सहसा पुंनिमनिसारयणं ||२९|| तं धवलियादिसिवलयं पिच्छइय जा चिंतए किमनंपि । अह एरिसमत्थि नवत्ति सरइ ता सो मणिं निययं ॥ ३० ॥ तं काउ करे जा नियइ को णु पवरोत्ति विम्हिओ दोवि । सहसा दुल्लियवहणे ता पन्भट्ठो कराउ मणी ||३१|| सो पडिओ जलहिजले तं नाउ इमो निवडिओ वहणे । हा हा मुट्ठो मुट्ठोति पुकरंतो य विलबंतो ||३२|| अह आसासिय पुट्ठो पवहणवणा सो किमेयं भो ! । तो अंसूणि मुयंतो साहइ सबंपि वृत्तंतं ॥ ३३ ॥ जंपइ य बहुकि| लेसेहिं अज्जियं देव ! मे हयासेण । हारियमञ्ज पमाया अप्पावसु पसिअ तं स्यणं || ३४ || भगइ वणी किह शुद्धय ! लब्भर भट्टो मणी इह अगाहे ? । जत्थ फुरेह न बुद्धी न य विहवबलं न पोरिस्सं ||३५|| ता सो दुमगो दुहिओ जह जाओ तं मणि विणा सुहरं । तह होइ जिओवि दुही पमायओ हारिय नरत्तं || ३६ || अवि देवाइपसाया तं लहिअ कयाइ पुण स हुआ सुही । न उण जिओवि पमत्तो नरभवमम्भहियसुकयलभं || ३७ || जह पुण अच्चणसहिओ सहलो चिंतामणी हवइ इहयं । तह नरभवोऽवि अच्चणनिरयस्स नरम्स सुइहेऊ ।। ३८ ।। तो अच्चणं विहेयं सया जिणाणं जहिच्छियफलाणं । दवच्चणभावञ्चणमेया पुण होइ तं दुविहं ||३९|| अथ महानिशीथोक्तं- दवच्चणमिह सावयसीलं सकारपूयदाणाई । भावच्चणं चरित्ताणुट्ठाणं उग्गतवचरणं ||४०|| तथा - भावच्चणमुग्गविहारया य दवच्चणं तु जिणपूआ । पढमा जईण दुन्निवि गिहीण पदमच्चिय पसत्था ||४१ || कंचणमणिसोवाणं थंभसहस्त्र सिए सुवण्णतले । जो कारिज जिणहरे तओऽवि तवसंजमो अनंतगुणो ॥ ४२ ॥ जओ-तत्रसंजमेण बहुभवसमजिअं| पावकम्ममललेवं । निद्धोविऊण अइरा अनंतसोक्खं वए मुक्खं ||४३|| काउंपि जिणाययणेहिं मंडिअं सबमेइणीवहं । दाणाइचउ For Private And Personal Acharya Shri Kailasi Gyanmandir प्रदक्षिणायां हरिकूटसंबंध ॥ ४९ ॥
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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