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________________ I Shri M a h Aradhana Kendra www.kobatirth.org INI Acharya Shri Kailas Gyanmandir नषेधिक्या भुवनमल्ल विधौ श्रीदे० चै-10 | वीतौषधं भर्तृषु ॥ १२४ ॥ आमंति तीइ वुत्ते असुरो सपियस्स भुवणमल्लस्स । वत्थाभरणाइ बहुँ दाउं पत्तो सठाणमि || त्यश्रीधर्म | ॥१२५।। कुमरोऽवि तो चलिओ पत्तो चंपाइ तमह वुत्तंतं । सिरिसेणनियो सोउं इय चिंतइ हरिसिओ हियए ॥१२६ ॥ संघाचार तमि कुले उप्पत्ति सो विणओ तं कलासु कोसल्लं । सो कोवि पुण्णपन्भारपगरिसो अत्थ एयस्स ॥ १२७ ।। जेणं लीला इच्चिय धुवं करिस्सिहि राहवेहंति । निव्वुयहियओ राया कुमरं संठवह वरभुवणे ॥ १२८ ॥ अह सजिअराहावेहमंडवे रयण॥४४॥ | थंभसोहिल्ले। मंचोवरि वरसिंहासणोवविद्वेसु निवईसु ॥ १२९ ॥ कुमरो असुरप्पियपवरवत्थाहरणभूसियसरीरो। पडिहारदसियंमि निविसइ सिंहासणे रम्मे ॥ १३० ॥ इत्तो य रयणमाला कुमरी सियसिचयसारलंकारा । सिबिआरूढा पत्ता तत्थुधविट्ठा पिउच्छंगे ॥ १३१ ।। अह सिरिसेणनिवेणं भणि भो भो निवा! निवइपुत्ता। जोराहमिणं विधइ सो कमाए इमीड वरो ॥ १३२ ।। जा मंडवमझसुनिविट्ठकणयथंभोवरि अहो वऽण्णा । वरकंचणपुत्तलिया ठविआ तीसे उ हिट्ठमि ।। १३३॥ चउचउचक्काई दाहिणेण वामेण वेगभमिराई । तेसिं अहभूमीए तिल्लजुआ कुंडिआ ठविआ ॥ १३४ ॥ तत्थ पडिबिंबयाए पंचालीए अहो नियंतेणं । विधेयवा वामच्छितारिया सावहाणेण ॥१३५॥ तह इह पत्ताण मए सवेसिं खत्तिआण नामाई । भुज्जेसु लिहावेउ | मिम्मियगोलेसु खित्ताई ॥१३६।। ठविआई ताई इह सायकुंभकुंभंमि संति कडढंते । अम्हं पुरोहियम्मी गोलो किर नीहरइ जस्स ॥१३७।। सो राहावेहमी ववसायं कुणइ इय ववत्थत्ति । तत्थ पुरोहियहत्थे अह पढमे गोलए पडिए ॥१३८॥ नामंमि वाइए तह अउज्झनयरी' जस्स अंगरुहो । मयरद्धयकुमरो उडिऊण सकरे करेइ धj॥१३९।। पुवमणिएण विहिणा मुक्कोऽविहु अप्फिडित्तु | अयरंमि । मुचरणमणिहियए इव भग्गो मयरद्धयस्स सरो ॥ १४०॥ एवं राहावेहे विहलारंभेमु खत्तिअवरेसु । उट्ठेइ भुवणमल्लो amaliniIMAnamnnamIAnamnamNIDASIMHANIHINDISANILE ॥४४॥ For Private And Personal
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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