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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७६ ) तज्जयावाप्तमोक्षाय, - - और अन्त में कर्मों को जीत कर मोक्ष प्राप्त किया जिन्होंने तथा परोक्षाय कुतीर्थिनाम् । जिनका सार्वज्ञीय स्वरूप कुतीथि - मिथ्यावियों को आगम्य है वे जान नहीं पाते, ऐसे श्री वर्धमानस्वामी को नम - स्कार हो ॥ १ ॥ येषां विकचारविन्दराज्या, -- जिन जिनेश्वरों के देवचरित खिले हुए कमलों की पंक्तियों के निमित्त से ज्यायः क्रमकमलावलिं दधत्या । —अतिशय सुन्दर चरणकमल की पंक्ति तत्सादृश्य को धारण करनेवाली है सहशैरिति सङ्गतं प्रशस्यं, -- इस प्रकार समान के साथ समानता ( सरीखों) का मेल प्रशंसनीय है । अर्थात् भगवन्तों के चरणकमल और देवरचित कमल दोनों का समान समागम अत्यन्त शोभाधारक हैं कथितं सन्तु शिवाय ते जिनेन्द्राः । - ऐसा विद्वानोंने कहा है । वे समस्त जिनेन्द्र भगवान् कल्याण ( मोक्ष ) के लिये हों ॥ २ ॥ कषायतापादितजन्तुनिर्वृतिं, कषाय रूप ताप पीडित प्राणियों को शान्ति For Private And Personal Use Only से
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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