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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पडिक्कमे वाइअस्स वायाए-वचन से लगे हुए अतिचार दोषों को वचन केशुभयोग से मैं पडिक्कमता हूँ। मणसा माणसिअस्सा-मन से लगे हुए अतिचारदोषों को मन के शुभ योग से मैं पडिक्कमता हूँ। सव्वस्स वयाइयारस्स । इस प्रकार सब व्रतों के जो अतिचार दोष लगे हों उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ और उन दोषों को आत्मा से हटाता हूँ॥ ३४॥ वंदण-वय-सिक्खा -दो प्रकार का वन्दन, श्रावक के बारह व्रत और दो प्रकार की ग्रहण, आसेवन रूप शिक्षा, गारवेसु सण्णा-कसाय-दंडेसु-ऋद्धिगारव, रसगारव और शातागारव ये तीन प्रकार के गारव, आहा- रादि चार संज्ञा और क्रोधादि चार कषाय के और मन वचन काया रूप तीन दंडों के वश से गुत्तीसु अ समिईसु अ--तथा मन, वचन, काया रूप तीन गुप्तियों में और ईर्यासमित्यादि पांच समितियों में, जो अइआरो अ तं निंदे।--जो अतिचार दोष लगे हों उनकी मैं निन्दा करता हूँ ॥ ३५ ॥ सम्मदिही जीवो,-समकितवन्त जीव-स्त्री, या पुरुष For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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