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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra विलेवणे www.kobatirth.org ( ६१ ) से चन्दनादि सदरूवरसगंधे - अयतना विलेपन लगाने, वाद्यादि के विविध शब्दों को सुनने, अनेक तरह के रूपों में मोहित होने, अनेक रसों का स्वाद लेने और सुगंधी पदार्थों को सूंघने, वत्थासण- आभरणे -- वस्त्र, आसक्त होने आदि में, आसन और आभूषणों में Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पडिक्कमे देसिअं सव्वं । - - दिवस सम्बन्धी जो अतिचार दोष लगे हों उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ॥ २५ ॥ कंदप्पे कुक्कुइए - - कामवासनाजनक कथा या बात कहना १, लोगों की हँसी, नकल और भाँडचेष्टा करना २, मोहरि अहिगरणभोगअइरिते -- निरर्थक अनुचित वचन बोलते रहना ३, हथियार, औजार तैयार करना, कराना ४, और भोगने की वस्तुओं को जरूरत से अधिक रखना ५, दंडम्मि अणट्टाए, – अनर्थदंड नामक - तइअम्मि गुणव्वए निंदे । -- तीसरे गुणव्रत के पांच या न्यूनाधिक अतिचार लगे हों. उनकी मैं निन्दा करता हूँ || २६ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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