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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३३ ) पारगयाणं - - संसारसमुद्र से पार पहुंचे हुए परंपरगयाणं-- अनुक्रम से मोक्ष में गये हुए लोअग्गमुवगयाणं -- लोक के अग्रभाग को प्राप्त किए हुए नमो सया सव्वसिद्धाणं -- ऐसे सर्वसिद्ध भगवानों को सदा मेरा नमस्कार हो ॥ १ ॥ जो देवाण वि देवो -- जो देवों के भी देव देवाधिदेव हैं जं देवा पंजली नमसंति - जिनको समस्त देवता भी हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हैं तं देवदेवमहिअं—और वे इन्द्रों से भी पूजित हैं सिरसा वंदे महावीरं । - उन महावीरप्रभु को मस्तक नमा कर वन्दन करता हूँ ॥ २ ॥ इक्को वि नमुक्कारो - एन भी नमस्कार अर्थात् एक बार भी किया हुआ वन्दन जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स -- सामान्य केवलज्ञानियों में श्रेष्ठ श्रीवर्द्धमानस्वामी का संसारसागराओ-संसाररूप समुद्र से तारेइ नरं व नारिं वा । - मनुष्य तथा स्त्रियों को तारनेवाला है, इसलिये बहुत बन्दन करने से प्राणी तिरे इसमें कोई आश्चर्य नहीं है ॥ ३ ॥ उज्जित सेलसिहरे -- गिरनार पर्वत के शिखर पर ३ For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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