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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आभार जिनेन्द्र शासन में क्रियाओं का महत्त्व कम नहीं है । इन्हीं क्रियाओं में तदाकार बनने के बाद स्वस्वरूप प्राप्ति का राह सुगम हो जाता है । अवश्य करने की क्रिया होने से उसे 'आवश्यक क्रिया' कहा गया है । आवश्यक क्रिया के सूत्रों को बोलने के साथ उस के अर्थ, भावार्थ और हार्द को समझने का प्रयास ही नहीं, नियम बना लिया जाय तो निश्चित है ये क्रियाएँ करने के साथ आत्मप्रगति के पथ पर चलने में विलम्ब नहीं होगा । प्रस्तुत 'देवसिय-राईयप्रतिक्रमण सूत्र' की भी मूल में एकाधिक आवृत्तियाँ प्रकाश में आई और आ रही हैं, किन्तु सार्थ संस्करण की अतीव ही आवश्यकता महसूस की गई और धार्मिक पठन-पाठन के लिये यह जरूरी भी था । स्व० गुरुदेव श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी म० ने सार्थ प्रतिक्रमणसूत्र का प्रथम संस्करण प्रकाशित करवा कर समाज में चेतना लाई थी । किन्तु वह संस्करण समाप्त हो जाने से हमने द्वितीय संस्करण संस्थाद्वारा प्रकाशित करने का निर्णय किया और अहमदाबाद चातुर्मास स्थित श्रीजयन्तविजयजी म० ' मधुकर' को लिखा, और सहयोग से यह प्रकाशन हम आप की सेवा में कर रहे हैं। मुनिराज - उन्हीं के प्रस्तुत For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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