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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५७) अशोकामुदोका विवेकाभिधानी, जगज्जन्तुमित्रा विचित्रावसानी । समस्तावलोका निरस्ता निदानी ॥ न० ॥ ८ ॥ " फिर आरती उतार के दोनों हाथ जोड कर नीचे लिखे मुताबिक 'गौतमस्तोत्राष्टक' बोल कर याचकों को यथाशक्ति दान देना । " अंगूठे अमृत वसे, लब्धितणा भंडार | ते गुरु गौतम समरिये, वांछित फल दातार ॥ १ ॥ प्रभुवचन त्रिपदी लही, सूत्र रचे तिण बार । चौदे पूरवमां रचें, लोकालोक विचार ॥ २ ॥ भगवती सूत्रे कर नमी, बंभीलिपि जयकार | लोक लोकोत्तर सुख भणी, भाषा लिपि अठार || ३ || वीरप्रभु सुखिया थया, दीवाली दिन-सार | अन्तर्मुहूर्त्त ततखिणे, सुखियो सहु संसार ॥ ४ ॥ केवलज्ञान लहे तथा, श्री गौतमगणधार । सुर नर हर्ष भरी प्रभु, करे अभिषेक उदार ॥ ५ ॥ सुर नर परषदा आगले, भाषे श्रीश्रुत नाण । ज्ञानथकी जग जानिये, द्रव्यादिक चौठाण ॥ ६ ॥ ते श्रुतज्ञानने पूजिये, दीप धूप मनुहार । वीरागम अविचल रहो, वरस इकवीस हजार ॥ ७ ॥ दीवालीदिन समरिये, गोयम नाम पवित्त । सुख संपद लीला लहे, पामे बहुलो वित्त ॥ ८ ॥ परंमोपकारी पूर्वाचार्यांने संसारी जैनगृहस्थों की सांसा For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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