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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९५) गाम नगर पुर पाटण जेह, जिनवर चैत्य नमुं गुणगेह । विहरमान वंदं जिन बीश, सिद्ध अनन्त नमुं निशदीश ॥१३॥ अढी द्वीपमा जे अणगार, अढार सहस सिलांगनाधार । पंच महाव्रत समिति सार, पाले पलावे पंचाचार ॥ १४ ॥ बाह्य अभितर तप उजमाल, ते मुनि वन्दं गुणमणिमाल । नित नित ऊठी कीर्ति करूं, 'जीव' कहे भवसायर तरूं ॥१५॥ - ५७. श्रीमहावीरजिन छन्द । सेवो वीरने चित्तमां नित्य धारो। अरिक्रोधने मन्नथी दूर वारो। संतोष वृत्ति धरो चित्त मांहि, राग द्वेषथी दूर थाओ उच्छाहि पड्या मोहना पाशमा जेह प्राणी,शुद्धतत्त्वनी वात तेणे न जाणी। मनुज जन्म वृथा कां गमो छो, जैन मार्ग छंडि भूला कां भभो छो ॥ २ ॥ अलोभी अमानी निरागी तजो छो, सलोभी समानी सरागी भजो छो। हरि-हरादि अन्यथी शु रमो छो, नदी गंग मूकी गलीमां पड़ो छो ॥ ३ ।। केई देव हाथे असी चक्रधारा, केई देव घाले गले रुण्डमाला । केई देव उत्संगे धरे रीझ वामा, केई देव साथे रमे वृन्द रामा ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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