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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सव्वसमाहिवत्तियागारेणं पाणस्स लेवेण वा अलेवेण वा बहुलेवेण वा ससित्थेण वा असित्थेण वा बोसिरइ । ४८. तिविहारोपवास का पञ्चक्खाण । सूरे उग्गए चउत्थभत्तं अब्भतह पच्चक्खाइ । तिविहं पि आहारं-असणं खाइमं साइम, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पारिद्वावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्यसमाहित्तियागारेणं पाणहार पोरिसिं साड्ढपोरिसिं मुट्टिसहियं पच्चक्खाइ। अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं, पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहुलेवेण वा ससिस्थेण वा, असित्थेण वा वोसिरइ । ४९. चोविहारोपवास का पच्चक्खाण । सूरे उग्गए अब्भत्तटुं पच्चक्खाइ। चउचिहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइम, साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं पारिठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं, बोसिरह। १ साधुओं के गोचरी में आहार अधिक आ जाय और वह न उपड सकता हो, उसको गुरुआज्ञा से उपवासी खा लेवे तो प्रत्याख्यान भंग नहीं होता, इसीलिये यह आगार है । अगर संध्या के समय इस उपवास का पच्चक्खाण लेना पडे तो उसमें यह आगार नहीं कहना । For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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