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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir జ ఆట త ల తల ene RABAR-ORRORSRests श्रीसमोशरण पूजन विधान भाषा। है ऐसा कौन प्राणी जैन समाजमे होगा जो कि समोशरणके माहात्म्यसे अनभिज्ञ होगा। . अर्थात् सबही जैनी समोशरणमहिमासे परिचित हैं जिन तीर्थकरदेवने घातिया कर्मोंका नाशकर डाला है उन्हें केवलज्ञान प्राप्त होय है तब इन्द्रआज्ञासे कुबेर समोशरणकी रचना करै है तिसका वर्णन इस प्रकार है प्रथम कोटके चार द्वारनपर चार मानाथम्भ होय हैं जिनको देखकर मानी जनोंका मान जाता रहै है अर्थात् भगवानकी पुण्य प्रकृतिका ऐसार उदय है कि जिनके अतिसय कर नम्री भूत होय हैं और जब भीतर जायकर समवशरणस्थ विभूतिको देख हैं ततौ प्रणियोंके अनेक विकल्प दूरि भागि जाय है जैसे प्रभूके प्रभार मण्डल झलके है उसमें प्राणियोंके सात २ भव दिखाई परें हैं अर्थात् तीन जन्म पहिले के। . और एक वर्तमान तीन जन्म जो अगाडी होवेंगे ऐसी २ आश्चर्य कारी अनेक बातोंको देख * कर क्रोधही है स्वभाव जिनका जैसे मूसाको-देखनेसे विलावको, सर्पके देखनेसे मोरको, . ६ तथा हिरणको देखकर सिंहको होता है ऐसे २ जाति विरोधी जीव भी शांति स्वभावी होय । एक स्थानमै तिष्टें है और धर्मोपदेश सुनकर अपना २ कल्यान करें हैं इत्यादि समोशरण की महिमा कहां तक लिखी जाय कोई मन्द बुद्धी सागरको गागरिमे नहीं भर सक्ता है अब उसी समोशरणका पाठ भाषा लालजीतकृत छपाया है सो पाटकोंसे विनय करता हूं कि स्वयं पुस्तक मगाकर पढ़िये और संतुष्ट हूजिये । पना-बद्रीप्रसाद जैन, पो० नीबकरोड़ी (फतेगढ) REFERESeseg- P RES-RESERECERESESERESES PRESENEL KE తతites For Private And Personal Use Only
SR No.020301
Book TitleDankatha arthat Vajrasen Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharamal Sanghai
PublisherJain Bharti Bhavan Kashi
Publication Year1926
Total Pages101
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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