SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ब्राह्मणना शापथी तक्षके दंश करयो, अने ते तक्षक तो शंकरना आभुषणमा जई पेठो तेथी तेनुं रक्षण थयुं छे. // 14 // लोक॥ विधात्रालिखितंभालेभूतभव्यंभवच्चयत्॥ सुखदुःखंभयंक्षेमंसबैचैवविधे वंशात्॥१५॥ ॥टीका॥ एमां कोनो दोष नथी,जेम विधात्राए ललाटमां लखेलंतेम भुत,भाविष्य,ने वर्तमानथयां जायछे,सुख दुःख भयने क्षेम,ए सर्व विधी वशछे. 15 लोक॥ तस्मान्नकस्यचिद्रोहंकर्तुमर्हसिमानद॥ पुरापितामहिराजन्मिथ्याऋष्ण नसंगरः॥१६॥ ॥टींका। हेमानद, मने मानना आपनारा जन्मेजय राजन् एटलाज हेतु माटे कोई उपर द्रोह न करवो, कारण के पूर्व तारा पिता महे पण ऋष्ण साथे मिथ्या संग्राम करचो हतो.॥१६॥ लोक॥ कृतश्चधरणीपालाझानाच्चमित्रवल्लन // एतावदुत्कावचनंगमनागमनो दधे // 17 // ॥टीका॥ हे मित्र कल्लन, ज्ञानथकी विचारीने जो,प्रजार्नु रक्षण करय, एवां वचन कहिने व्यासजि जवानुं मन करता हवा. // 17 // श्लोकानमस्कृत्यमुनिराजाप्रत्युत्थायमहासनात्।।निवेश्यमुनिशार्दूलजन्मेजय | उवाचह // 18 // टीका॥ एवां वचन सांभाळने जन्मेजय राजा पोताना आसन उ For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy