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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailassagarsun Gyanmandie % / केवा के, माता पिता स्वजन बाधववत् गणाता तैमछतां शा माटे युद्ध करवू पडयु / ते सांभळवानी ईच्छा छे. // 7 // ॥श्लोक // कस्मात्स्पातयोर्जातादृष्णिपांडवसंगरे // एतन्मेसंक्षयंछिंधिऋष्ण, वार्तामुदावह // 8 // टीका॥ अहो! इति आश्चर्ये दृष्णि पांडवन जे युद्ध थq,अने। एक विजाने विरुद्ध थq ए मोहोटुं आश्चर्यछे माटे अमारो संदेह भागो. // 8 // ॥श्लोक॥ ॥सुतउवाच॥ श्रृणुशौनकघर्मझडांगवस्वकथानकं,यज्जातमपित्तांत प्रवक्ष्यामितवाग्रतः॥९॥ ॥टीका // सूतपुराणिक बोलता हवा, हे धर्मना जाणनारा,शौनकादिक् मुनियो स्थिरतावडे करिने सांभळो, जे जे वृत्तांत डांगव राजाना। कारणथी थयूं ते सर्व तमने संजळावुछु.॥९॥ ॥श्लोक। परिक्षिदामसंप्राप्तेस्तक्षकाहिजशापत : जनमेजयश्चसंक्रुद्धोनागमेध चकारह // 10 // ॥टीका॥ ज्यारे परिक्षित राजा ब्राह्मणना शापथी तक्षत नागनो दंश थये सते स्वर्ग धामने पाम्या, ते समय तेनो पुत्र जन्मेजय राजा क्रोधायमान थइने, नागमेध यज्ञ करवानो विचार एटले सर्व सर्प कुलने अग्निमा होमि देवा | एवी ईच्छा करतो हवो. // 10 // For Private and Personal Use Only
SR No.020172
Book TitleDangvopakhyanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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