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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ . चिकित्सा-चन्द्रोदय । . (४) कलिहारीकी जड़ पानीमें पीसकर सूजन और गाँठ प्रभृतिपर लगानेसे फौरन आराम होता है। .. (५) कलिहारीकी जड़को पानीमें पीसकर अपने हाथपर लेप कर लो। जिस स्त्रीको बच्चा होने में तकलीफ होती हो, उसके हाथको अपने हाथसे छुलाओ--फौरन बच्चा हो जायगा । अथवा कलिहारीकी जड़को डोरेमें बाँधकर बच्चा जननेवालीके हाथ या पैरमें बाँध दो । बच्चा होते ही फौरन उसे खोल लो। इससे बच्चा जननेमें बड़ी आसानी होती है। इसका नाम ही गर्भघातिनी है। गृहस्थोंके घरों में ऐसे मौकेपर इसका होना बड़ा लाभदायक है। (६) कलिहारीके पत्तोंको पीस-छानकर छाछके साथ खिलानेसे पीलिया आराम हो जाता है । (७) अगर मासिक-धर्म रुक रहा हो, तो कलिहारीकी जड़ या औगेकी जड़ अथवा कड़वे वृन्दावनकी जड़ योनिमें रखो। (८) अगर योनिमें शूल हो, तो कलिहारी या ओंगेकी जड़को योनिमें रखो। (६) अगर कानमें कीड़े हों, तो कलिहारीकी गाँठका रस कानमें डालो। ... (१०) अगर साँपने काटा हो, तो कलिहारीकी जड़को पानीमें पीसकर नास लो। (११) अगर गाय बैल आदिको बन्धा हो- दस्त न होता हो, तो उन्हें कलिहारीके पत्ते कूटकर और आटेमें मिलाकर या दाने-सानीमें मिलाकर खिला दो; पेट छूट जायगा। (१२) अगर गायका अंग बाहर निकल आया हो, तो कलिहारीकी जड़का रस दोनों हाथों में लगाकर, दोनों हाथ उसके अंगके सामने ले जाओ। अगर इस तरह अंग भीतर न जाय, तो दोनों हाथ उस अंगपर लगा दो और फिर उन हाथोंको गायके मुँहके सामने करके दिखा दो। फिर वह अंग भीतर ही रहेगा- बाहर न निकलेगा। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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