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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष-उपविषों की विशेष चिकित्सा-"आक"। ५७ दर्द भी बहुत होता है। इसका दूध घावोंपर दोपहर पीछे लगाना चाहिये । सवेरे ही, चढ़ते दिनमें, लगानेसे चढ़ता और हानि करता है; पर ढलते दिन में लगानेसे लाभ करता है।। _आकके विषकी शान्तिके उपाय । आककी शान्ति ढाकसे होती है। ढाक या पलाशके वृक्ष जंगलमें बहुत होते हैं। (१) अगर प्राकका दूध लगानेसे घाव बिगड़ गया हो, तो ढाकका काढ़ा बनाकर, उससे घावको धोओ । साथ ही ढाककी सूखी छाल पीसकर, घावोंपर बुरको। ... (२) अगर आकका दूध, पत्ते या जड़ आदि बेकायदे खाये गये हों और उनसे तकलीफ हो, तो ढाकका काढ़ा पिलाना चाहिये । ODeeDEODEDEDEO आकके उपयोगी नुसखे। ODE (१) आककी जड़की छाल बकरीके दूधमें घिसकर, मृगीवालेकी नाकमें दो-चार बूँद टपकानेसे मृगी जाती रहती है। (२) पीले आकके पत्तोंपर सेंधानोन लगाकर, पुटपाटकी रीतिसे भस्म कर लो। इसमेंसे १ माशे दवा, दहीके पानीके साथ, खानेसे सीहोदर रोग नाश होता है। (३) मदारकी लकड़ीकी राख दो तोले और मिश्री दो तोलेदोनोंको पीसकर रख लो। इसमेंसे छ-छै माशे दवा, सवेरे-शाम, खानेसे गरमी रोग आठ दिनमें आराम होता है।। (४) आककी जड़ १७ माशे और कालीमिर्च चार तोले- इन दोनोंको पीसकर और गुड़में खरल करके, मटर-समान गोली बना लो । सवेरे-शाम एक-एक गोली खानेसे उपदंश या गरमी आराम हो जाती है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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