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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir _ विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा-"संखिया"। ४६ सफेद संखिया सुहागेसे बिल्कुल मिल जाता है। नवीन संखियामें चमक होती है, पर पुराने में चमक नहीं रहती। इसमें किसी तरहका जायका नहीं होता, इसीसे यूनानी हिकमतके ग्रन्थोंमें इसका स्वादबेस्वाद लिखा है । असलमें, इसका जायका फीका होता है; इसीसे अगर यह दही, रायते प्रभृति खाने-पीनेके पदार्थों में मिला दिया जाता है, तो खानेवालेको मालूम नहीं होता, वह बेखटके खा लेता है। ___ संखिया खानोंमें पाया जाता है। इसे संस्कृतमें विष, फारसीमें मर्गमूरा, अरबीमें सम्बुलफार और करूनुस्सम्बुल कहते हैं। इसकी तासीर गरम और रूखी है। यह बहुत तेज़ ज़हर है। ज़रा भी ज़ियादा खानेसे मनुष्यको मार डालता है। इसकी मात्रा एक रत्तीका सौवाँ भाग है । बहुतसे मूर्ख ताकत बढ़ानेके लिये इसे खाते हैं। कितने ही जरा-सी भी ज़ियादा मात्रा खा लेनेसे परमधामको सिधार जाते हैं। बेकायदे थोड़ा-थोड़ा खानेसे भी लोग श्वास, कमजोरी और क्षीणता आदि रोगोंके शिकार होते हैं। इसके अनेक खानेवाले हमने जिन्दगी. भर दुःख भोगते देखे हैं। अगर धन होता है, तो मनमाना घी-दूध खाते और किसी तरह बचे रहते हैं। जिनके पास धी-दूधको धन नहीं होता, वे कुत्तेकी मौत मरते हैं। अतः यह जहर किसीको भी न खाना चाहिये। हिकमतके ग्रन्थों में लिखा है, संखिया दोषोंको लय करता और सर्दीके घावोंको भरता है। इसको तेल में मिलाकर मलनेसे गीली और सूखी खुजली तथा सर्दीकी सूजन आराम हो जाती है। ___ डाक्टर लोग इसे बहुत ही थोड़ी मात्रामें बड़ी युक्तिसे देते हैं। कहते हैं, हमके सेवनसे भूख बढ़ती और सर्दीके रोग आराम हो जाते हैं। "तिब्बे अकबरी' में लिखा है, संखिया खानेसे कुलंज, श्वासरोध--श्वास रुकना और खुश्की ये रोग पैदा होते हैं । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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