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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६ ) १८ प्रकारके कोढ़, सफेद दाग, बनरफ या भभूत, सुन्नबहरी, आतशक या गर्मी रोग, पाके दोष, हाथी-पाँव, अर्धाङ्गवायु, लकवा, शरीरकी बेढङ्गी गुटाई, खाज-खुजली, दाफड़ या चकत्ते आदि सारे चर्म रोग निस्सन्देह नाश हो जाते हैं। लेकिन ध्यान रखिये, कि नया खून और नयी धातु पैदा करना छोकरोंका खेल नहीं है । जन्म-भरका कोढ़ एक आदित्य बारमें आराम नहीं हो जाता । खून साफ़ करनेवाली और धातु पुष्ट करनेवाली दवाएँ लगातार कुछ दिन सेवन करनेसे ही फ़ायदा होता है । इन दोनों रोगों में जल्दबाजी करनेसे कार्य-सिद्धि नहीं होती । साधारण रोगमें ४ बोतल और पुराने या असाध्य रोग में १ दर्जन बोतल पीना चाहिये। अगर इस अके साथ हमारा "कृष्ण-विजय तैल" भी मालिश कराया जाय, तब तो सोनेमें सुगन्ध ही हो जाय । यह अर्क रेलवे द्वारा मँगाना ठीक है । दाम एक बड़ी बोतलका २ ) नोट- यह कम-से-कम तीन बोतल मँगाना चाहिये । अव्वल तो बिना तीन बोतल पिये साफ़ तौरसे फ़ायदा नज़र नहीं आता, दूसरे, एक और तीन बोतलका रेलभाड़ा एक ही लगता है । मँगानेवालेको कम-से-कम आधे दाम पहले भेजने चाहियें और अपने नज़दीकी रेलवे स्टेशनका नाम लिखना चाहिये । गरमी रोगकी मलहम । इस मलहमके लगानेसे गर्मी के घाव, टाँचियाँ, जलन और दर्द फ़ौरन आराम होते हैं। मलहम लगाते ही ठण्डक पड़ जाती है । अगर इन्द्रियपर सूजन हो, मुख न खुलता हो, तो मलहम लगाकर ऊपरसे हमारे "कृष्ण- विजय तैल" की तराई करनेसे सूजन और घाव सब आराम हो जाते हैं । साथ ही "अर्क खूनसफ़ा " भी पीना जरूरी है । दाम १ शीशीका II) गर्मीका बुरका | यह सूखा बुरका है । इसके घावोंपर बुरकनेसे घाव जल्दी For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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