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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२ ) -यदि वह शख्स भी इस अमृत समान 'कृष्णविजय तैल" को कुछ दिन बराबर लगाता जावे, तो निस्सन्देह उसके फिर नये ना. खून निकल आवेंगे । यदि यह "कृष्णविजय तैल" किसी अँगरेजी दवाखाने में होता तो अच्छे लेबल, चमकदार शीशी और दवाखानेके अनाप-शनाप ख़र्च के कारण २) रुपये शीशीसे कममें न बिकता । परन्तु हमने स्वदेशी दवाका प्रचार करने और गरीब-अमीर सबको फ़ायदा पहुँचाने की गरज से इसकी दश तोलेकी शीशीका दाम सिर्फ़ लागत - मात्र १) रक्खा है । कर्ण रोगान्तक तैल । इस तेलको कान में डालनेसे कान बहना, कान में दर्द होना, सनसनाहट होना आदि कानके सारे रोग अवश्य आराम हो जाते हैं । ४ ६ महीने का बहरापन भी जाता रहता है । दाम १ शीशीका १) रुपया । तिला नामर्दी | यह तिला नामर्दके लिये दूसरा अमृत है । इसके लगातार ४० दिन लगाने से हर प्रकारकी नामर्दी आराम हो जाती है । नसोंमें नीलापन, टेढ़ापन, सुस्ती और पतलापन आदि दोष, जो लड़कपनकी बुरी आदतों से पैदा हो जाते हैं, अवश्य ठीक हो जाते हैं । इस तिलेके लगाने से छाले - आवले भी नहीं पड़ते और न जलन ही होती है । चीज़ अमीरोंके लायक़ है । बाजारू तिलों के लिये ठगाना बेवकूफी है । यह आजमाई हुई चीज़ है; जिसे दिया वही आराम हुआ । धातु-दोष तिलेसे आराम न होगा । अगर धातु कमजोर हो, तो हमारी "नपुंसक संजीवन बटी " या " धातु पुष्टिकर चूर्ण" या "कामदेव चूर्ण" भी सेवन - करना उचित है । दाम १ शीशी तिलेका ५) विषगर्भ तैल | यह तैल अत्यन्त गर्म है । शीतप्रधान वायु रोगों में इससे बहुत For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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