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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कभी-कभी पेशाब बन्द हो जाता हो-मूत्रमार्ग सकड़ा हो जानेसे सलाई फिरानेकी ज़रूरत पड़ती हो, वह घबरा नहीं और लगातार इस चूर्णको सेवन करें; निस्सन्देह उनकी इच्छा पूरी होगी। इस चूर्णके सेवनसे अधिक प्यासका लगना भी मिट जाता है। पेशाबके रोगियोंको यह चूर्ण दूसरा अमृत है। एक शीशी सेवन करते-करते ही लोग खुद तारीफके दरिया बहाने लगते हैं । दाम १ शीशी २॥) _ अकबरी चूर्ण । यह अमृत-समान चूर्ण दिल्लीके बादशाह अकबरके लिये उस जमानेके हकीमोंने बनाया था । क़लममें ताक़त नहीं जो इस चूर्णके पूरे गुण लिख सके। यह चूर्ण खानेमें दिल खुश और सुस्वाद है, अग्निको जगाता और भोजनको पचाता है। कैसा ही अधिक खाना खा लीजिये, फिर पेट खाली-का-खाली हो जायगा । अजीर्ण (बदहजमी) को पेटमें जाते ही भस्म कर देता है। खट्टी डकारें आना, जी मिचलाना, उल्टी होना, पेट भारी रहना, पेटकी हवा न खुलना, पेट या पेड़ का कड़ा रहना, पेटमें गोला-सा बना रहना, पाखाना साफ न होना आदि पेटके सारे रोगोंके नाश करने में रामवाण या विष्णु भगवान्का सुदर्शन चक्र है । दाम छोटी शीशी ।।) बड़ीका ।।।) है। नवाबी दन्तमञ्जन ।। इस मंजनको रोज़ दाँतोंमें मलनेसे दाँतोंसे खून आना, मसूड़े फूलना, मैं हमें बदबू आना, दाँतोंमें दर्द होना या कीड़ा लगना आदि समस्त दन्तरोग आराम हो जाते हैं। हिलते हुए दाँत वजूके समान मजबूत होकर मोतीकी लड़ीके समान चमकने लगते हैं । बादशाही ज़माने में नवाब और बादशाह इसे लगाया करते थे, इसीसे इसका नाम नवाबी दन्तमंजन है । दाम १ शीशी ॥) भोजन-सुधाकर मसाला । यह मसाला खानेमें निहायत मज़ेदार है । जो एक बार इसे चख For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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