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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-चन्द्रोदय। (७) बकरेके चिकने मांस-रसमें पीपर, जौ, कुलथी, सोंठ, अनार, आमले और घी-मिलाकर पीनेसे पीनस, जुकाम, श्वास, खाँसी, स्वरभङ्ग, सिर-दर्द, अरुचि और कन्धोंका दर्द--ये छै तरहके रोग नाश होते हैं। (८) असगन्ध, गिलोय, भारङ्गी, बच, अड़ सा, पोहकरमूल, अतीस और दशमूलकी दशों दवाएँ-इन सबका काढ़ा पीने और ऊपरसे दूध और मांसरस खानेसे यक्ष्मा-रोग नाश हो जाता है। (६) बन्दरके मांसको सुखाकर पीस लो। इसके सूखे मांस-चूर्णको खाकर, दूध पीनेसे यक्ष्मा नाश हो जाता है । कहाः कपिमांसं तथा पीतं क्षयरोगहरं परम् । दशमूल बलारास्नाकषायः क्षयनाशनः । बन्दरका मांस भी बकरीके दूधके साथ पीनेसे, क्षयको नष्ट करता है । दशमूल, खिरेंटी और रास्नाका काढ़ा भी क्षयको दूर करता है । परीक्षित है। (१०) हिरन और बकरीके सूखे मांसका चूर्ण करके, बकरीके दूधके साथ पीनेसे क्षय-रोग चला जाता है। (११) बच, राना, पोहकरमूल, देवदारु, सोंठ और दशमूलकी दशों दवाएँ--इनका काढ़ा पीनेसे पसलीका दर्द, सिरका रोग, राजयक्ष्मा और खाँसी प्रभृति रोग नाश हो जाते हैं। . (१२) दशमूल, धनिया, पीपर और सोंठ, इनके काढ़ेमें दालचीनी, इलायची, नागकेशर और तेजपात--इन चारोंके चूर्ण मिलाकर पीनेसे खाँसी और ज्वरादि रोग नाश होकर बल-वृद्धि और पुष्टि होती है। - " (१३) दो तोले लाख, पेठेके रसमें पीसकर, पीनेसे रक्तक्षय या मुँ हसे खून गिरना आराम होता है। . For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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