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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६३० चिकित्सा-चन्द्रोदय । रोगीके सब काम नियम और बधे टाइमसे होने चाहिए। उसे शारीरिक और मानसिक (Physical & Mental) परिश्रम, स्त्री-प्रसंग, चिन्ता-फिक्र और बहुत ज़ियादा खाने-पीने प्रभृतिसे बचना चाहिये । बैंगन, बेलफल, करेला, राई, .गुस्सा, दिनमें सोना, मीठा खाना और मैथुन करना क्षयवालेको परम अहितकारक हैं । राह चलनेकी थकानसे हुए अध्वशोषमें दिनमें सोना बुरा नहीं है। हाँ, एक बात और सबसे जरूरी कहकर हम अपने प्रश्नोत्तर ख़त्म करेंगे । वह यह है कि क्षय-रोगीको, जहाँ तक संभव हो, बकरीका ही दूध, दही और घी देना चाहिए । क्योंकि बकरीके दूध-घी आदिमें अधिक गुण होते हैं । वह जो आक, नीम प्रभृतिके पत्ते खाती है, इसीसे उसके घी-दूध आदिमें क्षय-रोगनाशक शक्ति होती है। क्षय और प्रमेहका बड़ा सम्बन्ध है। प्रमेहीको बकरियोंके बीच में सोना और बकरीकी मींगनी वगैरः खानेसे आराम होना अनेक प्राचार्योंने लिखा है । आगे यक्ष्मा-नाशक नुसखा नम्बर २ देखिये । thani FA For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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