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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थावर विषोंकी सामान्य चिकित्सा । इसको देनेको राय दी है और इसे सामान्य विष-चिकित्सामें लिखा है, अतः यह स्थावर और जंगम दोनों तरहके विषोंपर दी जा सकती है। (२) तरुण पलाश या नवीन ढाकके खारको चौगुने या छै गुने जलमें घोलो और २१ वार छानो । फिर इसमेंसे, दवाओंसे चौगुना, जल ले लो और दवाओंमें मिलाकर पकायो । खार बनानेकी विधि हमने इसी भागमें आगे लिखी है। फिर भी संक्षेपसे यहाँ लिख देते हैं:-जिसका क्षार बनाना हो, उसे जड़से उखाड़कर छायामें सुखा लो। फिर उसको जलाकर भस्म कर लो। भस्मको एक बासनमें दूना पानी डालकर ६ घण्टे तक भीगने दो । फिर उसमेंके पानीको धीरे-धीरे दूसरे बासनमें नितार और छान लो, राखको फेंक दो । एक घण्टे बाद, इस साफ़ पानीको कढ़ाहीमें नितारकर, चूल्हेपर चढ़ा दो और मन्दी आगं लगने दो । जब सब पानी जल जाय, बूंद भी न रहे, कढ़ाहीको उतार लो। कढ़ाहीमें लगा हुआ पदार्थ ही खार या क्षार है, इसे खुरचकर रख लो। संक्षिप्त स्थावर-विष चिकित्सा (१) स्थावर विषसे रोगी हुए आदमीको, “बलपूर्वक" वमन करानी चाहिये; क्योंकि उसके लिये वमनके समान कोई और दवाई नहीं है । वमन कराना ही उसका सबसे अच्छा इलाज है। नोट-चूँकि विष अत्यन्त गरम और तीक्ष्ण है; इसलिये सब तरहके विषोंमें शीतल सेचन करना चाहिये । विष अपनी उष्णता और तीक्ष्णता-गरमी और तेज़ी--के कारण विशेषकर, पित्तको कुपित करता है; अतः वमन कराने के बाद शीतल जलसे सेचन करना चाहिये । (२) विष-नाशक दवाओं अथवा अगदोंको घी और शहद के साथ, तत्काल, पिलाना चाहिये। (३) विषवालेको खट्टे रस खानेको देने चाहियें। शरीरमें गोलमिर्च पीसकर मलनी चाहियें। भोजन-योग्य होनेपर, लाल शालि चाँवल, साँठी चाँवल, कोदों और काँगनी--पकाकर देनी चाहियें। (४) जिन-जिन दोषोंके चिह्न या लक्षण अधिक नज़र आवें, उन For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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