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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२२ चिकित्सा-चन्द्रोदय । चलती है। (१४) शामको खाँसी बढ़ जाती है। (१५) आँखें जियादा सफेद हो जाती हैं । (१६) फेफड़ों में दाह या जलन होती है। प्र०-वातप्रधान, पित्तप्रधान और कफप्रधान ज्ञयके लक्षण बताओ। उ० __ वातप्रधान क्षय । (१) सिरमें दर्द, (२) पसलियोंमें दर्द, (३) कन्धों वग़ैर में दर्द, (४) गला बैठ जाना, (५) आवाजमें खरखराहट और (६) मन्दा-मन्दा ज्वर । पित्तप्रधान क्षय । (१) छातीमें सन्ताप, (२) हाथ-पैरों में जलन, (३) पतले दस्त (अतिसार ), (४) खून मुँ हसे आना, (५) मैं हमें बदबू और (६) तेज बुखार । कफप्रधान क्षय । (१) अरुचि, (२) वमन, (३) खाँसी, (४) श्वास, (५) सिरदर्द, (६) शरीरमें दर्द, (७) पसीने आना, (८) जुकाम, (६) मन्दाग्नि, (१०) मुँह मीठा-मीठा रहना, (११) हर समय मन्दा-मन्दा ज्वर । प्र०-यक्ष्माकी मर्यादा कहो। उ०--परं दिन सहस्रन्तु यदि जीवति मानवः । सुभिषग्भिरुपक्रान्तस्तरुणः शोषपीडितः ॥ अगर क्षय-रोगी १००० दिन तक जीता रहे, तो समझो कि, रोगी जवान था और किसी सुचिकित्सकने उसका इलाज किया था। प्र०-हिकमतवाले क्षयपर क्या कहते हैं ? उ०-हकीम लोग क्षयको दिन या तपेदिक़ कहते हैं । इस तपेदिकके लक्षण हमारे प्रलेपक ज्वरसे मिलते हैं। प्रलेपक ज्वर कफ-पित्तसे होता है, पर कोई-कोई उसे त्रिदोषसे हुआ मानते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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